අල් කුර්ආනය පාරිසරික ගැටළු ගැන කතා කර තිබේ ද?

''तथा धरती में उसके सुधार के पश्चात् बिगाड़ न पैदा करो, और उसे भय और लोभ के साथ पुकारो। निःसंदेह अल्लाह की दया अच्छे कर्म करने वालों के क़रीब है।'' [256] [सूरा अल-आराफ़ : 56]

“जल और थल में लोगों के हाथों की कमाई के कारण बिगाड़ फैल गया है, ताकि वह (अल्लाह) उन्हें उनके कुछ कर्मों का मज़ा चखाए, ताकि वे बाज़ आ जाएँ।” [257] [सूरा अल-रूम : 41]

''तथा जब वह वापस जाता है, तो धरती में दौड़-धूप करता है ताकि उसमें उपद्रव फैलाए तथा खेती और नस्ल (पशुओं) का विनाश करे और अल्लाह उपद्रव को पसंद नहीं करता।'' [258] [सूरा अल-बक़रा : 205]

''और धरती में आपस में मिले हुए विभिन्न खंड हैं, तथा अंगूरों के बाग़, खेती और खजूर के पेड़ हैं, कई तनों वाले और एक तने वाले, जो एक ही जल से सींचे जाते हैं, और हम उनमें से कुछ को स्वाद आदि में कुछ से बढ़ा देते हैं। निःसंदेह इसमें उन लोगों के लिए निश्चय बहुत-सी निशानियाँ हैं, जो सूझ-बूझ रखते हैं।'' [259] [सूरा अल-रअ्द : 4]

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