हम सहीह बुख़ारी (जो हदीस की सबसे प्रामाणिक पुस्तक है) में रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के लिए आयशा -अल्लाह उनसे राज़ी हो- की गहरी मुहब्बत की बात पाते हैं और देखते हैं कि उन्होंने इस शादी की कभी शिकायत नहीं की।
आश्चर्य है कि उस समय रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के दुश्मनों ने आप पर सबसे घटिया आरोप लगाए। आपको कवि कहा, पागल कहा, परन्तु उन्होंने इस बाबत आपपर लांछन नहीं लगाया और न इसका किसी ने उल्लेख किया। मगर इस समय के कुछ स्वार्थी लोगों की तरफ से यह मुद्दा उठाया गया है। यह मामला या तो उन प्राकृतिक चीजों में से एक है, जो उस समय लोगों में आम थीं, जैसा कि छोटी उमर में बादशाहों की शादी की कहानियाँ हमें इतिहास के पन्नों में मिल जाती हैं। ईसाई धर्म में मरयम की उम्र का उदाहरण ले लें। ईसा के उनके गर्भ में आने से पूर्व लगभग नव्वे साल के एक पुरूष की तरफ से उन्हें शादी का पैग़ाम भेजा गया था। उस समय मरयम की उमर रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- से आयशा की शादी के समय आइशा की की उम्र के आसपास ही थी। या 11वीं शताब्दी में इंग्लैंड की रानी इसाबेला की कहानी की ले लें, जिन्होंने आठ साल की उमर में शादी कर ली। इसके और भी दुसरे उदाहरण मौजद हैं। या फिर पैगंबर की शादी की कहानी वैसी नहीं है, जैसी कि लोग कल्पना करते हैं। क्या बनू कुरैज़ा के यहूदियों के हत्याकांड तथा लूटमार एवं हत्या आदि के दंड को अमानवीय न समझा जाए?