यदि क़ुरआन यहूदियों के यहाँ से लिया गया होता, तो वे खुद बढ़-चढ़कर इसकी निस्बत अपनी ओर कर लेते। लेकिन क्या यहूदियों ने वह्य के उतरने के समय इस तरह का कोई दावा किया?
क्या नमाज़, हज और ज़कात आदि शरई अहकाम तथा अन्य इस्लामी मामलात यहूदियों से भिन्न नहीं हैं? फिर गैर-मुस्लिमों की गवाही पर विचार करें, जो कहती है कि क़ुरआन दूसरी पुस्तकों से भिन्न है, मानव निर्मित नहीं है तथा वैज्ञानिक चमत्कारों से भरा हुआ है। जब किसी आस्था का मानने वाला, उसकी आस्था के विपरीत आस्था को सही कहे, तो यह उसके सही होने का सबसे बड़ा प्रमाण है। यह संसार के पालनहार का एकमात्र संदेश है और इसे एकमात्र संदेश होना भी चाहिए। अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का लाया हुआ क़ुरआन आपकी जालसाज़ी की नहीं, बल्कि आपके सच्चे नबी होने की दलील है। अल्लाह ने भाषाज्ञान में माहिर अरब और गैर-अरब सब को चुनौती दी है कि वे इस क़ुरआन की तरह एक क़ुरआन या उसकी किसी आयत की तरह एक आयत ही ले आएँ, परन्तु वे विफल रहे। यह चुनौती आज तक क़ायम है।