අල්-කුර්ආනය යනු කුමක්ද?

क़ुरआन सारे संसारों के रब द्वारा भेजी गई सबसे आखिरी किताब है। मुसलमान उन सभी पुस्तकों पर विश्वास रखते हैं, जो क़ुरआन से पहले उतारी गई थीं, जैसे कि इब्राहिम के स़हीफ़े, ज़बूर, तोरात और इंजील आदि। मुसलमानों का मानना है कि सभी पुस्तकों का वास्तविक संदेश तौहीद-ए-खालिस (शुद्ध एकेश्वरवाद) अर्थात एक अल्लाह पर ईमान एवं केवल उसी की इबादत था। क़ुरआन पूर्व की दूसरी आकाशीय पुस्तकों के विपरीत किसी विशेष गिरोह या जमात केंद्रित नहीं है। न इसके विभिन्न संस्करण पाए जाते हैं और न इसमें कोई बदलाव आया है, बल्कि तमाम मुसलमानों के लिए इसका एक ही संस्करण है। मूल क़ुरआन अभी भी अपनी मूल भाषा (अरबी) में है। बिना किसी बदलाव, विरूपण या परिवर्तन के، वह हमारे समय तक सुरक्षित है और ऐसा ही रहेगा। खुद सारे संसारों के रब ने उसकी सुरक्षा का वचन दिया है। यह सभी मुसलमानों के यहाँ उपलब्ध है, बहुत-से लोगों के सीने में सुरक्षित है और लोगों के पास मौजूद कई भाषाओं में क़ुरआन का वर्तमान अनुवाद, केवल उसके अर्थों का अनुवाद है। अल्लाह ने अरब और गैर-अरब सभी को इस तरह के क़ुरआन की रचना करने की चुनौती दी थी, यह जानते हुए कि उस समय के अरब भाषाज्ञान, साहित्यिक ज्ञान और कविता में दूसरों से अधिक निपुण थे। परन्तु उन लोगों को विश्वास हो गया कि इस क़ुरआन का अल्लाह के अतिरिक्त किसी और की तरफ से होना असंभव है। यह चुनौती चौदह शताब्दियों से अधिक समय से क़ायम है। परन्तु कोई भी इसे स्वीकार करने में सक्षम नहीं हुआ। यह इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण है कि कुरआन अल्लाह की किताब है।

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