මෙලොව ජීවිතයේ ප්රධානතම අරමුණ කුමක් ද?

जीवन का मुख्य उद्देश्य सुख की अस्थायी अनुभूति का आनंद लेना नहीं, बल्कि अल्लाह को जानकर और उसकी आराधना करके गहरी आंतरिक शांति प्राप्त करना है।

इस लक्ष्य को प्राप्त करना शाश्वत आनंद और सच्चे सुख की ओर ले जाएगा। अतः, जब यह हमारा प्राथमिक लक्ष्य है, तो इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए किसी भी समस्या या परेशानी का सामना करना आसान होगा।

आएँ किसी ऐसे व्यक्ति की कल्पना करें, जिसने कभी किसी पीड़ा या दर्द का अनुभव नहीं किया है। वह व्यक्ति, अपने विलासितापूर्ण जीवन के कारण, अल्लाह को भूल गया है और इस प्रकार वह वह कार्य करने में विफल रहा जिसके लिए उसे बनाया गया था। इस व्यक्ति की तुलना किसी ऐसे व्यक्ति से करें, जिसके कष्ट और पीड़ा के अनुभवों ने उसे अल्लाह तक पहुँचाया है और उसने जीवन में अपने उद्देश्य को प्राप्त कर लिया है। इस्लामी शिक्षाओं के दृष्टिकोण से, वह व्यक्ति जिसकी पीड़ा उसे अल्लाह की ओर ले गई, उस व्यक्ति से बेहतर है, जिसने कभी दुख नहीं उठाया और जिसके आनंदों ने उसे अल्लाह से दूर कर दिया।

प्रत्येक मनुष्य इस जीवन में किसी लक्ष्य या उद्देश्य को प्राप्त करना चाहता है और लक्ष्य अक्सर उसके अंदर मौजूद विश्वास पर आधारित होता है। जिस चीज़ को हम धर्म में पाते हैं लेकिन विज्ञान में नहीं पाते, वह वह कारण या औचित्य है, जिसके लिए मनुष्य प्रयास करता है।

धर्म उस कारण को बताता और स्पष्ट करता है, जिसके लिए मनुष्य की सृष्टि हुई है और जीवन अस्तित्व में आया है, जबकि विज्ञान एक साधन है और इसके पास इरादे या उद्देश्य की कोई परिभाषा नहीं है।

धर्म की ओर लौटते समय एक व्यक्ति को जिस चीज़ से सबसे ज़्यादा डर लगता है, वह है जीवन के सुखों से वंचित होना। लोगों के बीच साधारण धारणा यह है कि धर्म का अर्थ अनिवार्य रूप से अलग रहना है। धर्म में कुछेक चीज़ों को छोड़कर, जिनको उसने हलाल किया है, सारी चीज़ें हराम हैं।

यही वह ग़लती है, जिसके कारण बहुतों ने खुद को धर्म से अलग कर लिया। इस्लाम धर्म इसी अवधारणा को सही करने के लिए आया है। उसने बताया है कि कि इंसान के लिए असलन सारी चीज़ें हलाल हैं। हराम चीज़ें चंद ही हैं। इस बात पर कहीं कोई मतभेद भी नहीं है।

धर्म व्यक्ति को समाज के सभी सदस्यों के साथ मिलजुल कर रहने का आह्वान करता है। इसी प्रकार धर्म आत्मा और शरीर की आवश्यकताओं और दूसरों के अधिकारों के बीच संतुलन की मांग करता है।

धर्म से दूर समाजों के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक यह है कि इंसानों के साथ कैसा व्यवहार किया जाए और उसके बुरे कामों से कैसे निपटा जाए। इन समाजों को विकृत आत्माओं के मालिकों को रोकने के लिए कठोर दंड के अलावा कुछ नहीं मिलता।

"जिसने पैदा किया है मृत्यु तथा जीवन को, ताकि तुम्हारी परीक्षा ले कि तुममें किसका कर्म अधिक अच्छा है?" [87] सांसारिक जीवन का क्या मूल्य है?

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