वास्तव में, अल्लाह चाहता है कि उसके सभी बंदे ईमान ले आएँ।
''और वह अपने बंदों के लिए नाशुक्री पसंद नहीं करता, और यदि तुम शुक्रिया अदा करो, तो वह उसे तुम्हारे लिए पसंद करेगा। और कोई बोझ उठाने वाला किसी दूसरे का बोझ नहीं उठाएगा। फिर तुम्हारा लौटना तुम्हारे पालनहार ही की ओर है। तो वह तुम्हें बतलाएगा जो कुछ तुम किया करते थे। निश्चय वह दिलों के भेदों को भली-भाँति जानने वाला है।'' [312] [सूरा अल-जुमर : 7]
इसके बावजूद, यदि अल्लाह सभी बंदों को बिना हिसाब जन्नत में प्रवेश दे दे तो यह न्याय का घोर उल्लंघन होगा। इसका अर्थ यह होगा कि अल्लाह अपने नबी मूसा और फिरऔन के साथ एक जैसा मामला करे, और अत्याचारी एवं उनके शिकार को जन्नत में प्रवेश करा दे, जैसे कि कुछ हुआ ही नहीं। यह सुनिश्चित करने के लिए कि स्वर्ग में प्रवेश करने वाले लोग योग्यता के आधार पर इसमें प्रवेश करें, एक तंत्र की आवश्यकता है।
इस्लामी शिक्षाओं की सुंदरता है कि हम जितना अपने बारे जानते हैं, अल्लाह हमें हमारे बारे में उससे अधिक जानता है। उसने हमें बताया कि उसकी संतुष्टि प्राप्त करने और स्वर्ग में प्रवेश करने के लिए हमें अपने पास मौजूद सांसारिक साधनों को अपनाना ज़रूरी है।
“अल्लाह किसी व्यक्ति को उसकी शक्ति से अधिक भार नहीं देता।” [313] [सूरा अल-बक़रा : 286]