उदाहरण के तौर पर जो व्यक्ति अपने माता-पिता का तिरस्कार करता है, उनका अपमान करता है, उन्हें घर से बाहर निकाल देता है और उन्हें सड़क पर डाल देता है, हम उस व्यक्ति के बारे में क्या महसूस करेंगे?
यदि कोई व्यक्ति कहे कि वह उसको अपने घर में ले आएगा, उसका सम्मान करेगा, उसे खाना खिलाएगा और इस काम के लिए उसका धन्यवाद देगा, तो क्या लोग इस काम के लिए उसकी सराहना करेंगे? क्या लोग उसके इस व्यवहार को स्वीकार करेंगे? ऐसे में हम उस व्यक्ति के अंजाम की क्या उम्मीद कर सकते हैं, जो अपने सृष्टिकर्ता को अस्वीकार करता है और उसमें विश्वास नहीं रखता है? दरअसल उसको आग की सज़ा देना उसको सही स्थान पर रखना है। क्योंकि उसने पृथ्वी पर शांति और अच्छाई का तिरस्कार किया है, अतः वह स्वर्ग के आनंद के योग्य नहीं है।
हम उस व्यक्ति के साथ क्या व्यवहार किए जाने की उम्मीद करेंगे, जो रासायनिक हथियार से बच्चों को सज़ा दैता है। क्या उसे जन्नत में बिना हिसाब प्रवेश मिल जाएगा?
जबकि उनका पाप ऐसा पाप नहीं है, जो समय के साथ सीमित हो, बल्कि यह उनकी एक स्थायी आदत बन चुकी है।
''यदि उन्हें संसार में लौटा दिया जाए, तो वही करेंगे जिनसे उन्हें रोका गाय है। वास्तव में वे हैं ही झूठे।'' [309] [सूरा अल-अन्आम : 28]
वे अल्लाह का सामना भी झूठी क़सम खाकर करेंगे, जब वे क़यामत के दिन उसके सामने होंगे।
''जिस दिन अल्लाह उन सब को उठाएगा, तो वे उसके सामने क़समें खाएँगे, जिस तरह तुम्हारे सामने क़समें खाते हैं। और वे समझेंगे कि वे किसी चीज़ (आधार)[11] पर (क़ायम) हैं। सुन लो! निश्चय वही झूठे हैं।'' [310] [सूरा अल-मुजादला : 18]
साथ ही, बुराई वह लोग भी करते हैं, जिनके हृदयों में ईर्ष्या और जलन है और जो लोगों के बीच समस्याओं और संघर्षों का कारण बनते हैं। इसलिए यह न्याय में से है कि उन्हें आग की सज़ा मिले, जो उनके स्वभाव के अनुकूल है।
''और जो हमारी आयतें को झुठलाया और उनसे घमंड किया, वही आग की सज़ा पाने वाले हैं और वे उसमें सदैव रहेंगे।'' [311] [सूरा अल-आराफ़ : 36]
अल्लाह के गुण न्यायकारी का तक़ाज़ा है कि वह अपनी दया के साथ-साथ बदला लेने वाला भी हो। ईसाई धर्म में अल्लाह केवल ''मुहब्बत'' का नाम है, यहूदी धर्म में अल्लाह केवल ''क्रोध'' का नाम है, जबकि इस्लाम में अल्लाह न्यायकारी एवं दयालू को कहते हैं, जिसके सभी अच्छे नाम हैं, जो ख़ूबसूरत भी हैं और जलाली (सम्मान सूचक) भी।
फिर व्यवहारिक जीवन में हम आग का प्रयोग खरे को खोटे से अलग करने के लिए करते हैं जैसा कि सोना और चाँदी। अल्लाह प्रलोक के जीवन में आग का प्रयोग अपने बन्दे को गुनाहों एवं पापों से पाक करने के लिए करेगा, फिर अंत में अपनी दया से हर उस व्यक्ति को आग से निकाल देगा जिसके दिल में कण के बराबर भी ईमान होगा।