बुराई अल्लाह की तरफ से नहीं आती है। बुराइयाँ अस्तित्वगत मामले नहीं हैं। अस्तित्व केवल अच्छाई का है।
उदाहरण के तौर पर यदि कोई व्यक्ति खड़ा होता है और किसी अन्य व्यक्ति को तब तक मारता है, जब तक वह हिलने-डुलने की क्षमता खो नहीं देता, तो यह अत्याचार है और अत्याचार बुरी चीज़ है।
लेकिन वह व्यक्ति जो लाठी उठाता है और दूसरे व्यक्ति को मारता है, उसके पास शक्ति का होना कोई बुराई नहीं है।
इच्छा का पाया जाना, जो अल्लाह ने उसके अंदर रखी है, बुराई नहीं है।
उसके पास हाथ हिलाने की क्षमता होना भी बुराई नहीं है।
लाठी में मारने का गुण होना भी बुराई नहीं है।
इन सब अस्तित्वगत चीज़ों का होना अपने आपमें भलाई है और इसमें कोई बुराई नहीं है, जब तक इन चीज़ों के ग़लत इस्तेमाल से कोई नुकसान न हो, जो कि पिछले उदाहरण में पक्षाघात रोग है। इस उदाहरण के आधार पर, एक बिच्छू और एक सांप का अस्तित्व अपने आप में कोई बुराई नहीं है, जब तक कि कोई व्यक्ति इन्हें न छेड़े और यह उसे डंक न मार दें। अल्लाह के कार्यों में बुराई नहीं है। वह केवल भलाई है। बल्कि बुराई उन धटनाओं में है, जिनको अल्लाह अपने फ़ैस़ले एवं किसी निर्धारित हिकमत के कारण घटित होने देता है। उनमें बहुत सारे हित छुपे होते हैं। हालांकि अल्लाह उन घटनाओं को घटित होने से रोकने में सक्षम है। मगर इंसान ने इन अच्छी चीज़ों का ग़लत प्रयोग किया है।