"जब उसने अपनी जाति से कहा : क्या तुम ऐसी निर्लज्जता का काम कर रहे हो, जो तुमसे पहले संसारवासियों में से किसी ने नहीं किया है? तुम स्त्रियों को छोड़कर कामवासना की पूर्ति के लिए पुरुषों के पास जाते हो? बल्कि तुम सीमा लांघने वाली जाति हो। और उसकी जाति का उत्तर बस यह था कि इनको अपनी बस्ती से निकाल दो। ये लोग अपने में बड़े पवित्र बन रहे हैं।" [305] [सूरा अल-आराफ़ : 80-82]
यह आयत पुष्टि करती है कि समलैंगिक वंशानुगत नहीं है और न यह मानव आनुवंशिक कोड की संरचना का हिस्सा है। क्योंकि लूत की जाति इस तरह की अश्लीलता का आविष्कार करने वाला समुदाय है। यह व्यापक वैज्ञानिक अध्ययन के अनुरूप है, जिससे इसकी पुष्टि होती है कि समलैंगिकता का आनुवंशिकी से कोई लेना-देना नहीं है। [306] ''मौसूअह अल-कहील लिल ईजाज़ फी अल-क़ुरआन व अल-सुन्नह'', https://kaheel7.net/?p=15851
क्या हम चोर की चोरी करने की प्रवृत्ति को स्वीकार करेंगे और उसका सम्मान करेंगे? यह भी प्रवृत्ति है, लेकिन दोनों ही मामलों में यह अप्राकृतिक प्रवृत्ति है। यह मानव प्रवृत्ति के विरूद्ध बग़ावत है और प्रकृति पर हमला है। इसे ठीक किया जाना चाहिए।
अल्लाह ने मनुष्य को पैदा किया और उसे सही रास्ता दिखाया और उसके पास अच्छाई और बुराई के रास्तों के बीच चयन करने की स्वतंत्रता है।
''और हमने उसे दोनों रास्ते दिखा दिए।'' [307] [सूरा अल-बलद : 10]
इसलिए, हम पाते हैं कि समलैंगिकता को प्रतिबंधित करने वाले समाज में शायद ही कभी यह अप्रकृतिक चीज़ दिखाई पड़ती हो, जबकि जिस वातावरण में इस व्यवहार को हलाल समझा जाता है और इसे प्रोत्साहन दिया जाता है, उसमें समलैंगिकों का अनुपात बढ़ जाता है। यह इंगित करता है कि किसी व्यक्ति में विचलन की संभावना को निर्धारित करने वाली चीज़ वातावरण और उसके आस-पास की शिक्षाएँ हैं।
उदाहरण के तौर पर चैनलों को देखने, प्रौद्योगिकी के उपयोग या किसी फुटबॉल टीम के लिए कट्टर समर्थन के अनुसार, एक व्यक्ति की पहचान हर पल बदलती रहती है। वैश्वीकरण ने उसे एक जटिल इंसान बना दिया है। गद्दार एक दृष्टिकोण वाला हो गया, असामान्य सामान्य व्यवहार का मालिक बन गया, उसके पास सार्वजनिक बहस में भाग लेने का क़ानूनी अधिकार आ गया, बल्कि हम पे उसकी मदद करना एवं उससे सुलह करना ज़रूरी हो गया। आज वह लोग हावी हो गए जिनके पास तकनीक है। यदि असामान्य वह लोग हैं जिनके पास शक्ति के साधन हैं तो वह दूसरों पर अपनी मान्यताएँ लागू करने की कोशिश करते हैं, जिससे इंसान का रिश्ता पहले अपने आपसे, फिर अपने समाज से और फिर अपने सृष्टिकर्ता से ख़राब होता है। फिर यदि व्यक्तिवाद सीधे समलैंगिकता से जुड़ जाए, तो वह मानव वृत्ति ग़ायब हो जाती है, जिससे मानव जाति अपना रिश्ता जोड़ती है और एक परिवार की अवधारणाएं खत्म हो जाती हैं। इस लिए पश्चिम ने व्यक्तिवाद से छुटकारा पाने के उपाय विकसित करना शुरू कर दिए हैं, क्योंकि इस अवधारणा पर चलते रहने से आधुनिक मनुष्य ने जो कमाया है, वह बर्बाद हो जाएगा। ठीक उसी तरह जैसे उसने परिवार की अवधारणा को खो दिया है। इस प्रकार, पश्चिम आज भी समाज में व्यक्तियों की संख्या कम होने की समस्या से पीड़ित है, जिससे प्रवासियों को आकर्षित करने के लिए दरवाजे खुल गए हैं। अल्लाह में विश्वास, उसके द्वारा हमारे लिए बनाए गए ब्रह्मांड के नियमों का सम्मान और उसके आदेशों और निषेधों का पालन करना, दुनिया तथा आख़िरत में खुशी का मार्ग है।