මුස්ලිම්වරුන් මක්කම දෙසට සලාත් ඉටු කරන්නේ ඇයි?

अल्लाह ने पवित्र घर काबा [297] को इबादत के लिए पहला घर और मोमिनों की एकता का प्रतीक बनाया है, जिसकी ओर सभी मुसलमान नमाज़ के समय मुँह करते हैं और इस तरह वे धरती के विभिन्न क्षेत्रों से दायरे बनाते हैं, जिनका केंद्र मक्का है। क़ुरआन हमें इबादत करने वालों के आसपास की प्रकृति की प्रतिक्रिया के कई दृश्य प्रस्तुत करता है, जैसा कि नबी दाऊद -अलैहिस्सलाम- के साथ पहाड़ों एवं परिंदों का अल्लाह की पवित्रता बयान करना एवं पवित्र किताब की तिलावत करना। ''तथा हमने प्रदान किया दाऊद को अपना कुछ अनुग्रह, हे पर्वतो! सरुचि महिमा गान करो उसके साथ तथा हे पक्षियो! तथा हमने कोमल कर दिया उसके लिए लोहा को।'' [298] इस्लाम एक से अधिक जगहों में ज़ोर देकर कहता है कि संपूर्ण ब्रह्मांड, अपनी सारी सृष्टियों सहित, सारे संसार के रब की प्रशंसा और महिमा गान करता है। अल्लाह तआला ने कहा है : [सूरा सबा : 10]

''निःसंदेह पहला घर, जो मानव के लिए (अल्लाह की वंदना का केंद्र) बनाया गया, वह वही है, जो मक्का में है, जो शुभ तथा संसार वासियों के लिए मार्गदर्शन है।'' [299] (सूरा आल-ए-इमरान, आयत संख्या : 96) काबा एक चौकोर और लगभग घनाकार इमारत है, जो मक्का अल-मुकर्रमा में मस्जिद-ए-हराम के केंद्र में स्थित है। इस भवन में एक दरवाज़ा है और कोई खिड़की नहीं है। उसमें कुछ नहीं है। न वह किसी की क़ब्र है। वह केवल नमाज़ का कमरा है। काबा के अंदर जो मुसलमान नमाज़ पढ़ता है, वह किसी तरफ़ भी मुँह करके नमाज़ पढ़ सकता है। पूरे इतिहास में काबा का कई बार नवीकरण हुआ है। पैगंबर इब्राहिम -अलैहिस्सलाम- ने सबसे पहले अपने बेटे इस्माइल -अलैहिस्सलाम- के साथ मिलकर इस घर को उसकी बुनियादों से उठाने का काम किया था। काबा के एक कोने में ''हजर-ए-असवद'' अर्थात काला पत्थर लगा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि यह आदम -अलैहिस्सलाम- के समय आया था। लेकिन यह कोई चमत्कारी पत्थर नहीं है या इसमें अप्राकृतिक शक्तियाँ नहीं हैं, बल्कि यह मुसलमानों के लिए एक प्रतीक का प्रतिनिधित्व करता है।

पृथ्वी की गोलाकार प्रकृति दिन और रात को आगे-पीछे लाने का काम करती है, जबकि मुसलमानों का काबा के चारों ओर तवाफ़ में व्यस्त होना और पृथ्वी के विभिन्न हिस्सों से मक्का की ओर मुँह करके दिन भर में पाँच वक़्त की नमाज़ें पढ़ना, स्थायी रूप से सारे संसार के रब की महिमा और प्रशंसा में निरंतर रूप से लगे पूरे ब्रह्मांड का हिस्सा बनता है। दरअसल सृष्टिकर्ता की ओर से अपने पैगंबर इब्राहिम -अलैहिस्सलाम- को काबा की नींव उठाने और उसके चारों ओर तवाफ़ करने का आदेश था और उसने हमें आदेश दिया है कि काबा हमारी नमाज़ का क़िबला हो।

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