දිනක පස් වතාවක් මුස්ලිම්වරයා සලාත් ඉටු කරනුයේ ඇයි?

मुसलमान पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की शिक्षाओं का पालन करता है और ठीक उसी तरह नमाज़ पढ़ता है, जैसे पैगंबर ने नमाज़ पढ़ी थी।

नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया है : "तुम लोग उसी तरह नमाज़ पढ़ो, जिस तरह तुमने मुझे नमाज़ पढ़ते हुए देखा है।" [294] इसे इमाम बुख़ारी ने रिवायत किया है।

मुसलमान दिन भर अपने रब से संबंध साधने की अपनी तीव्र इच्छा के कारण दिन में पाँच बार नमाज़ के द्वारा उससे वार्तालाप करता है। यह वह साधन है, जिसे अल्लाह ने हमें उससे वार्तालाप करने के लिए प्रदान किया है और हमें अपनी भलाई के लिए इसका पालन करने का आदेश दिया है।

''तुम्हारी ओर जो किताब उतारी गई है, उसको पढ़ो, नमाज़ स्थापित करो, वास्तव में, नमाज़ निर्लज्जता एवं दुराचार से रोकती है, और अल्लाह का सम्मान ही सर्व महान है, और जो कुछ तुम करते हो, अल्लाह उसे जानता है।'' [295] [सूरा अल-अंकबूत : 45]

मनुष्य के रूप में, हम हर दिन अपनी पत्नियों और बच्चों से कई बार फोन पर बात करते हैं। यह उनसे हमारी गहरी मुहब्बत एवं संबंध के कारण है।

नमाज़ का महत्व इसमें भी दिखाई देता है कि वह बुरे कार्य करने पर आत्मा को डांटती है और उसको अच्छा करने के लिए प्रेरित करती है। यह तब होता है, जब वह अपने सृष्टिकर्ता को याद करती है, उसकी सज़ा से डरती है और उसकी क्षमा तथा प्रतिफल की लालसा रखती है।

साथ ही, मनुष्य के कार्यों और कर्मों को सारे संसारों के रब के लिए विशुद्ध होना चाहिए, क्योंकि इंसान के लिए हमेशा स्मरण करना या नीयत को नवीनीकृत करना मुश्किल होता है। इसलिए संसार के रब के साथ संवाद करने और उसकी इबादत और नेक काम के द्वारा इखलास (एकनिष्ठता) की के नवीनीकरण के लिए नमाज़ के नियत समय का होना आवश्यक था। यह नियत समय दिन और रात में कम से कम पांच बार होता है। यह पाँच नियत समय (फ़ज्र, ज़ुहर, अस़्र, मग़रिब और ईशा) चौबीस घंटे के दौरान दिन और रात के परिवर्तन के मुख्य समयों और घटनाओं को दर्शाते हैं।

''अतः जो कुछ वे कहते हैं, उसपर सब्र करें तथा सूर्य उगने से पहले[42] और उसके डूबने से पहले[43] अपने पालनहार की प्रशंसा के साथ उसकी पवित्रता बयान करें, और रात की कुछ घड़ियों में भी पवित्रता बयान करें, और दिन के किनारों[45] में, ताकि आप प्रसन्न हो जाएँ।'' [296] [सूरा ताहा : 130]

सूर्योदय से पहले तथा सुर्यास्त से पहले का अर्थ है फ़ज्र एवं अस़्र की नमाज़।

''रात्रि के क्षणों में'' का अर्थ है ईशा की नमाज़।

''और दिन के किनारों में'' का अर्थ है ज़ुहर एवं मग़रिब की नमाज़।

दिन के दौरान होने वाले सभी प्राकृतिक परिवर्तनों को कवर करने के लिए यह पाँच प्रार्थनाएँ हैं, ताकि इंसान इन समयों में अपने सृष्टिकर्ता एवं निर्माता को याद करे।

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