इस्लाम अनाथ के लालन-पालन करने की प्रेरणा देता है और अनाथ का लालन-पालन करने वाले से आग्रह करता है कि वह अनाथ के साथ वैसा ही व्यवहार करे जैसा वह अपने बच्चों के साथ करता है। परन्तु अनाथ का अपने असली परिवार को जानने का अधिकार सुरक्षित रखता है, ताकि उसका अपने बाप से विरासत पाने का अधिकार सुरक्षित रहे और वंश मिश्रित न हो।
एक पश्चिमी लड़की की कहानी, जिसे तीस साल बाद अचानक पता चला कि वह एक गोद ली हुई बेटी है, तो उसने आत्महत्या कर ली। यह कहानी गोद लेने के क़ानून की ख़राबी का सबसे बड़ा प्रमाण है। यदि वे उसे बचपन से ही बता देते, तो यह उसपर दया करना होता और उसे अपने परिवार को ढूँढ़ने का अवसर प्राप्त होता।
''तो तुम भी अनाथ पर सख़्ती न किया करो।'' [263] [सूरा अल-ज़ुहा : 9]
''दुनिया और आख़िरत के बारे में। और वे आपसे अनाथों के विषय में पूछते हैं। (उनसे) कह दीजिए कि उनके लिए सुधार करते रहना बेहतर है। यदि तुम उन्हें अपने साथ मिलाकर रखो, तो वे तुम्हारे भाई हैं और अल्लाह बिगाड़ने वाले को सुधारने वाले से जानता है। और यदि अल्लाह चाहता, तो तुम्हें अवश्य कष्ट में डाल देता। निःसंदेह अल्लाह सब पर प्रभुत्वशाली, पूर्ण हिकमत वाला है।'' [264] [सूरा अल-बक़रा : 220]
''और जब (विरासत के) बंटवारे के समय (गैर-वारिस) रिश्तेदार, अनाथ और निर्धन उपस्थित हों, तो उसमें से थोड़ा बहुत उन्हें भी दे दो और उनसे भली बात कहो।'' [265] [सूरा अल-निसा : 8]