इस्लाम से पहले, महिलाओं को विरासत से वंचित कर दिया गया था। जब इस्लाम आया, तो उसे विरासत में शामिल किया। औरत को पुरुषों की तुलना में अधिक या उनके बराबर हिस्सा भी मिलता है। कुछ हालतों में वह उत्तराधिकारी बन जाती है और पुरुष नहीं बन पाता। जबकि अन्य हालतों में रिश्तेदारी और वंश के दर्जे के अनुसार पुरुषों को महिलाओं की तुलना में अधिक अनुपात प्राप्त होता है। यही वह हालत है जिसके बारे में पवित्र क़ुरआन कहता है :
''अल्लाह तुम्हारी संतान के संबंध में तुम्हें आदेश देता है कि पुत्र का हिस्सा, दो पुत्रियों के बराबर है।'' [210] [सूरा अल-निसा : 11]
एक मुस्लिम महिला ने एक बार कहा कि वह इस बात को तब तक नहीं समझ पाई, जब तक कि उसके पति के पिता की मृत्यु नहीं हो गई और उसके पति को अपनी बहन की तुलना में दोगुनी राशि विरासत में मिली। उसके पति ने उन पैसों से एक कार और अपने परिवार के एक निजी घर के लिए आवश्यक चीजें खरीदीं। जबकि उसकी बहन ने मिले पैसों से गहने खरीदे और बाकी पैसों को बैंक में जमा कर दिया। क्योंकि उसके पति को ही आवास और अन्य मूलभूत सुविधाएँ उपलब्ध करानी थीं। तब उस महिला ने इस आदेश की हिकमत को समझा और अल्लाह का शुक्र अदा किया।
कई समाजों में महिलाएं अपने परिवार की देखभाल के लिए कड़ी मेहनत भी करती हैं, लेकिन इसकी वजह से विरासत का नियम नहीं बिगड़ेगा। क्योंकि, उदाहरण के तौर पर किसी फोन के मालिक द्वारा ऑपरेटिंग निर्देशों का पालन न करने के कारण किसी भी मोबाइल फोन का खराब हो जाना, ऑपरेटिंग निर्देशों के ख़राब होने का प्रमाण नहीं है।