मुसलमान अपनी बेटी की शादी किसी यहूदी या ईसाई से क्यों नहीं करता?

एक मुसलमान पति अपनी ईसाई या यहूदी पत्नी के मौलिक धर्म, उसकी धार्मिक पुस्तक एवं उसके रसूल का सम्मान करता है। बल्कि उसका ईमान इसके बग़ैर पूरा ही नहीं होता है। वह उसे अपने धर्म को मानने की स्वतंत्रता देता है। जबकि इसके विपरीत बात सत्य नहीं है। यहूदी या ईसाई जब इस बात का विश्वास रखेंगे कि अल्लाह के अतिरिक्त कोई माबूद नहीं है एवं मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- अल्लाह के रसूल हैं, हम अपनी बेटियों की शादी उनसे कर देंगे।

इस्लाम अक़ीदे में वृद्धि करता और उसे पूर्णता प्रदान करता है। उदाहरण के तौर पर यदि कोई मुसलमान ईसाई धर्म अपनाना चाहे, तो उसके लिए ज़रूरी हो जाता है कि वह मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- एवं क़ुरआन पर अपने ईमान को खो दे, साथ ही ट्रिनिटी में विश्वास रखे और पादरियों तथा अन्य लोगों का सहारा लेने के कारण सारे संसारों के रब के साथ सीधे संबंध को भी खो दे। और यदि यहूदी धर्म ग्रहण करना चाहे, तो उसके लिए ज़रूरी होगा कि वह मसीह -अलैहिस्सलाम- एवं सही इंजील पर विश्वास न रखे। हालाँकि किसी के पास यहूदी धर्म अपनाने का अवसर ही नहीं है। क्योंकि यह कोई वैश्विक धर्म नहीं, बल्कि एक जाति विशेष का धर्म है। इसमें सांप्रदायिक संकीर्णता स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।

PDF