पहली आयत : ''धर्म में कोई ज़बरदस्ती नहीं है। सत्य असत्य से स्पष्ट हो चुका है।'' [154] यह आयत एक महान इस्लामी नियम को स्थापित करती है। वह नियम यह है कि धर्म के मामले में ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं है। जबकि दूसरी आयत है : ''उन लोगों से जिहाद करो, जो अल्लाह एवं आख़िरत के दिन पर ईमान नहीं रखते।'' [155] इस आयत का एक विशेष परिप्रेक्ष्य है। यह आयत उन लोगों के बारे में है, जो अल्लाह के रास्ते से रोकते हैं एवं दूसरों को इस्लाम स्वीकार करने से मना करते हैं। इस तरह देखें तो दोनों आयतों के बीच कोई विरोधाभास नहीं है। [सूरा अल-बक़रा : 256] [सूरा अल-तौबा : 29]