क्या हज के अवसर पर किए जाने वाले कार्य, जैसे काबा आदि का सम्मान, मूर्तिपूजक अनुष्ठान नहीं हैं?

बुतपरस्त धर्मों और कुछ निर्धारित स्थानों तथा प्रतीकों का सम्मान करने के बीच एक बड़ा अंतर है, चाहे वो धार्मिक हों या राष्ट्रीय या सामुदायिक।

उदाहरण स्वरूप, जमरात को पत्थर मारना, कुछ विचारों के अनुसार, केवल हमारा शैतान का विरोध करने, उसका अनुपालन न करने और इब्राहीम -अलैहिस्सलाम- के काम की पैरवी करने के लिए है, जब उनके सामने शैतान उन्हें अल्लाह के आदेश को लागू करने एवं अपने बेटे को क़ुरबान करने से रोकने के लिए प्रकट हुआ और उन्होंने उसे पत्थर मारा। [301] इसी तरह सफा और मरवा के बीच दौड़ लगाना, हाजरा -अलैहस्सलाम- के काम का अनुसरण करने के लिए है, जब उन्होंने अपने बेटे इस्माइल -अलैहिस्सलाम- के लिए पानी की तलाश में दौड़ लगाई थी। बहरहाल, हज के सभी काम अल्लाह के ज़िक्र को स्थापित करने के लिए एवं सारे संसार के रब की आज्ञाकारिता और उसके आगे समर्पण के प्रमाण के तौर पर हैं। इनसे पत्थर या किसी स्थान या व्यक्तियों की इबादत उद्देश्य नहीं है। जबकि, इस्लाम एक अल्लाह की इबादत का आह्वान करता है, जो आकाशों और धरती और उनके बीच मौजूद सारी चीज़ों का स्वामी है, हर चीज का सृष्टिकर्ता और मालिक है। इमाम हाकिम ने ''मुस्तदरक'' और इमाम इब-ए-ख़ुज़ैमा ने अपनी सहीह में इब्न-ए-अब्बास -रज़ियल्लाहु अन्हूमा- से रिवायत किया है।

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