नमाज़ के क़िबले की दिशा अल-अक्सा मस्जिद से मक्का की मस्जिद-ए-हराम की ओर क्यों बदल दी गई?

पूरे इतिहास में काबा का बहुत उल्लेख किया गया है। अरब प्रायद्वीप के सबसे दूरस्थ हिस्सों से भी लोग सालाना इसका भ्रमण करते और पूरे अरब प्रायद्वीप के लोग इसकी पवित्रता का सम्मान करते रहे हैं। काबा का उल्लेख ओल्ड टेस्टामेंट की भविष्यवाणियों में भी हुआ है। (बक्का की वादी में गुज़रते हुए, वहाँ झरना निकालेंगे।) [300]

अरब अपने अज्ञान काल में भी इस पवित्र घर का सम्मान करते थे। मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- को नबी बनाकर भेजे जाने के समय अल्लाह ने पहले बैत अल-मक़दिस को क़िबला बनाया, फिर उसे छोड़ बैत अल-हराम (काबा) की ओर मुँह करके नमाज़ पढ़ने का आदेश दिया, ताकि नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के अनुयायियों में से जो लोग अल्लाह के लिए निष्ठावान हैं, उनको छाँट लिया जाए, उन लोगों से जो पलट जाने वाली प्रवृति के हों। क़िबला का रुख़ बदलने का उद्देश्य दिलों को अल्लाह के लिए शुद्ध करना एवं दूसरे के साथ संबंध को ख़त्म करना था। चुनांचे मुसलमानों ने मान लिया और वे उसी तरफ फिर गए जिस तरफ अल्लाह ने उन्हें फेरा। जबकि यहूदी पैगंबर के बैत अल-मक़दिस की तरफ़ मुँह करके नमाज़ पढ़ने को अपने लिए एक तर्क मानते थे। [ओल्ड टैस्टमैंट, भजनसंहिता : 84]

क़िबला का परिवर्तन दरअसल एक महत्वपूर्ण मोड़ और धार्मिक नेतृत्व को बनी इसराईल से लेकर अरबों को हस्तांतरित करने का संकेत था। यह संसार के रब के साथ किए गए उनके वचनों को भंग करने के कारण हुआ।

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