इस्लाम - प्रश्न एवं उत्तर के माध्यम से

इस पुस्तक का उद्देश्य है, इस्लाम धर्म के बारे प्रचलित प्रश्नों के उत्तर के माध्मय से इस महान धर्म का लोगों से परिचय कराना; सदियों से विभिन्न सभ्यताओं तथा जातियों को समायोजित करने, घटनाओं के साथ जीते हुए आगे बढ़ने और विकास के साथ तालमेल रखने में उसकी विशिष्टता, अनुपमता और लचीलेपन को दर्शाना तथा उसकी मज़बूती, उसके चेहरे को बिगाड़ने के प्रयासों के बावजूद उसके बाक़ी एवं जारी रहने की क्षमता और उन नाकारात्मक प्रचारों के सामने डटे रहने की शक्ति को बयान करना, जो उसके विरुद्ध किए जाते हैं, जो उसे आतंकवाद से जोड़ते हैं और लोगों को उसके ख़िलाफ़ लड़ने पर उभारते हैं।

इंसान किसी पूज्य पर ईमान ज़रूर रखता है। चाहे वह ईमान किसी सच्चे माबूद पर रखे या किसी असत्य पूज्य पर। फिर वह उसे पूज्य कहे या कुछ और। उनका यह पूज्य कोई पेड़ भी हो सकता है। आकाश का कोई तारा, कोई औरत, ऑफ़िस का बाॅस या कोई वैज्ञानिक सिद्धांत भी हो सकता है। यह पूज्य उसकी आकांक्षा भी हो सकती है। इंसान का किसी न किसी चीज़ पर ईमान ज़रूरत होता है, जिसका वह अनुसरण करता है, जिसको पवित्र समझता है और जिसके निर्देश अनुसार जीवन बिताता है, बल्कि यदि उसके लिए जान देने की ज़रूरत पड़े तो जान भी दे देता है। हम इसी को इबादत कहते हैं। दरअसल सच्चे माबूद की इबादत इंसान को दूसरे लोगों या समाज की इबादत से मुक्ति प्रदान करती है।... More

सच्चा पूज्य वही है, जिसने इस ब्रह्मांड को पैदा किया है और असत्य पूज्यों की इबादत इस दावे पर आधारित है कि वे पू्जय हैं। जबकि पूज्य के लिए सृष्टिकर्ता होना अनिवार्य है। फिर उसके सृष्टिकर्ता होने को प्रमाणित इस प्रकार किया जा सकता है कि ब्रह्मांड में उसकी पैदा की हुई चीज़ों को देखा जा सके या पूज्य की ओर से कोई संदेश आए, जो साबित करे कि वह सृष्टिकर्ता है। लेकिन जब इस दावे का कोई प्रमाण न हो, न ब्रह्मांड में उनकी पैदा की हुई चीज़ें देखी जा सकती हों और न खुद उनकी वाणी से इस तरह की बात साबित हो पाती हो, तो निश्चित रूप से ये पूज्य असत्य होंगे।... More

मध्य पूर्व में ईसाई, यहूदी एवं मुसलमान शब्द "अल्लाह" का प्रयोग पूज्य को बताने के लिए करते हैं। इसका अर्थ होता है एक सत्य पूज्य, जो मूसा एवं ईसा का भी पूज्य है। सृष्टिकर्ता ने पवित्र क़ुरआन में "अल्लाह" एवं दूसरे नामों एवं गुणों से अपना परिचय कराया है। शब्द ''अल्लाह'' का उल्लेख ओल्ड टेस्टामेंट के पुराने संस्करण में 89 बार हुआ है।... More

यह प्रश्न सृष्टिकर्ता के बारे में ग़लत धारणा एवं उसे सृष्टि के समरूप समझने के कारण पैदा हुआ है। यह धारणा तार्किक और दार्शनिक दोनों रूप से अस्वीकृत है। उदाहरण स्वरूप :... More

सृष्टिकर्ता पर ईमान इस वास्तविकता पर आधारित है कि चीज़ें बिना कारण के प्रकट नहीं होतीं। आपको बस इतना बता देना काफ़ी है कि विशाल भौतिक ब्रह्मांड और उसमें रहने वाले जीव एक अमूर्त चेतना रखते हैं और सारहीन गणित के नियमों का पालन करते हैं। एक सीमित भौतिक ब्रह्मांड के अस्तित्व की व्याख्या करने के लिए भी हमें एक स्वतंत्र, सारहीन और शाश्वत स्रोत की आवश्यकता है।... More

हम इंद्रधनुष और मरीचिका देखते हैं, जबकि इनका कोई वजूद नहीं होता। हम गुरुत्वाकर्षण को देखे बिना उसके अस्तित्व को सच मानते हैं, सिर्फ इसलिए कि यह भौतिक विज्ञान द्वारा सिद्ध किया गया है।... More

उदाहरण के तौर पर, हालाँकि अल्लाह के लिए उच्च उदाहरण है, परन्तु केवल बात समझाने लिए कहा जा सकता है कि जब इंसान इलेक्ट्रॉनिक उपकरण का प्रयोग करता है और उसे बाहर से निर्देशित करता है, तो वह उस इलेक्ट्रॉनिक उपकरण के अंदर किसी भी हाल में प्रवेश नही करता।... More

जैसा कि प्रसिद्ध है कि मानव रचित संविधान में संप्रभुता के अधिकार या बादशाह के अधिकार से छेड़छाड़ करना दूसरे किसी भी अपराध से बढ़कर है। तो बादशाहों के बादशाह के अधिकार के बारे में आपका क्या ख़्याल है? अल्लाह का अपने बन्दों पर अधिकार है कि वे केवल उसी की इबादत करें, जैसा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ''अल्लाह का अपने बन्दों पर यह अधिकार है कि वे उसी की इबादत करें और उसके साथ किसी को शरीक (साझी) न करें। और क्या तुम जानते हो कि जब बन्दे ऐसा कर लें, तो अल्लाह पर बन्दों का क्या अधिकार है? (वर्णनकर्ता कहते हैं कि) मैंने कहा : अल्लाह और उसके रसूल बेहतर जानते हैं। आपने कहा : बन्दों का अल्लाह पर अधिकार यह है कि वह उनको यातना न दे।''... More

अल्लाह तआला का पवित्र क़ुरआन की बहुत सारी आयतों में अपने लिए ''हम'' का शब्द प्रयोग करना यह बताता है कि वह एक है, जो सुन्दरता एवं पवित्रता के बहुत सारे गुणों को अपने अंदर समेटे हुए है। इसी प्रकार अरबी भाषा में यह शब्द शक्ति एवं महानता को दर्शाता है। अंग्रेजी भाषा में भी ''हम बादशाह'' कहा जाता है। इस तरह बहुवचन सर्वनाम का प्रयोग बादशाह, सुल्तान और देश के प्रमुख आदि ऐसे व्यक्तियों के लिए किया जाता है, जो बहुत बड़े पद पर बैठे हों। अलबत्ता, क़ुरआन इबादत के मामले में हमेशा केवल एक अल्लाह की इबादत पर जोर देता है।... More

''आप कह दें कि यह तुम्हारे पालनहार की ओर से यह सत्य है ।जो चाहे ईमान लाए एवं जो चाहे इनकार कर दे।'' [28] [सूरा अल-कहफ़ : 29]... More

जब इन्सान अपने आपको बहुत अधिक मालदार एवं दानशील पाता है, तो वह अपने दोस्तों एवं रिश्तेदारों को खाने-पीने के लिए बुलाता है।... More

यदि अल्लाह सृष्टि को अस्तित्व में आने या न आने का एख़्तियार देता, तो इसके लिए ज़रूरी होता सृष्टि का वजूद पहले से रहा हो। क्योंकि बिना अस्तित्व के मानव की कोई राय ही कैसे हो सकती है? यहाँ सवाल अस्तित्व में होने या न होने का है। इंसान का जीवन के साथ जुड़ा होना एवं उसे खोने का डर उसका इस नेमत से राज़ी होने का सबसे बड़ा प्रमाण है।... More

धर्म जीवन व्यतीत करने का तरीक़ा है, जो इंसान के संबंध को उसके सृष्टिकर्ता के साथ एवं उसके आस-पास की चीज़ों के साथ सुनियोजित करता है। धर्म आख़िरत का रास्ता है।... More

धर्म की आवश्यकता खाने-पीने की आवश्यकता से भी अधिक है। इंसान स्वाभाविक रूप से धार्मिक है। यदि वह सत्य धर्म को नहीं पा सका, तो अपने लिए कोई न कोई धर्म गढ़ लेगा, जैसा कि मूर्तिपूजा पर आधारित धर्मों को लोगों ने गढ़ लिया। इंसान को जिस प्रकार इस दुनिया में शांति की आवश्यकता है, उसी प्रकार उसे मरने के बाद शांति की आवश्यकता है।... More

यह आवश्यक है कि सत्य धर्म इंसान की प्रथम फ़ितरत के अनुसार हो, जिसे बिना किसी मध्यस्थ के अपने सृष्टिकर्ता के साथ सीधे संबंध की आवश्यकता होती है और जो इंसान में सद्गुणों और अच्छे आचरणों का प्रतिनिधित्व करती है।... More

जब मानव जाति फ़ना हो जाएगी, जो केवल अल्लाह बाक़ी रह जाएगा, जो हमेशा जीवित रहेगा और जिसे मौत नहीं आनी है। जो व्यक्ति धर्म की छत्रछाया में आचरण के पालन के महत्व को नकारता है, वह उस व्यक्ति की तरह है, जो बारह वर्ष क्लास में पढ़े और अंत में कहे कि मुझे सर्टिफिकेट नहीं चाहिए।... More

अक़्ल की भूमिका चीज़ों को आंकने और उनको प्रमाणित करने की है। अतः इंसान के अस्तित्व के उद्देश्य तक अक़्ल का पहुँच न पाना, उसकी भूमिका का ख़त्म हो जाना नहीं है, बल्कि धर्म को यह अवसर प्रदान करना है कि वह इन्सान को वह बात समझाए, जो अक़्ल समझ नहीं पाई। धर्म इंसान को उसके सृष्टिकर्ता के बारे, उसके अस्तित्व के स्रोत एवं उसके उद्देश्य के बारे में बताता है। तब अक़्ल इन बातों को समझने का प्रयास करती है, इनका मूल्यांकन करती है एवं इनकी पुष्टि करती है। इस तरह सृष्टिकर्ता के वजूद को मान लेने से विवेक तथा तर्क निष्क्रिय नहीं हुआ।... More

आज (ब्रह्मांड के एक निर्माता के अस्तित्व के) कई खंडनकर्ता मानते हैं कि प्रकाश को समय में सीमित नहीं किया जा सकता है। लेकिन वे इस बात को स्वीकार नहीं करते कि सृष्टिकर्ता समय और स्थान के नियम के अधीन नहीं है। अर्थात् सृष्टिकर्ता हर चीज़ से पहले और हर चीज़ के बाद है, वह उच्च है और कोई भी सृष्टि उसे अपने घेरे में नहीं ले सकती।... More

ब्रह्मांड के निर्माता के अस्तित्व में विश्वास एक प्रतिबद्धता और जिम्मेदारी है। विश्वास विवेक को सचेत करता है और मोमिन को अपने हर बड़े और छोटे काम के लिए खुद की समीक्षा करने पर उभारता है। मोमिन ज़िम्मेदार होता है अपने आपका, अपने परिवार का, अपने पड़ोसी का, यहाँ तक कि मुसाफिर का भी। वह साधनों को अपनाता है और अल्लाह पर भरोसा करता है। मैं नहीं समझता हूँ कि ये अफीम के नशेड़ियों की विशेषताएँ हैं। [43] अफीम एक मादक पदार्थ है, जिसे खसखस के पौधे से निकाला जाता है और हेरोइन बनाने के लिए उसका इस्तेमाल होता है।... More

सही धर्म की परख तीन मुख्य बिंदुओं के आधार पर की जा सकती है [44] : पुस्तक ''ख़ुराफ़तुल इल्हाद'' (नास्तिक्ता का मिथक) का उद्धरित। लेखक : डा० अम्र शरीफ़, प्रकाशन: 2014 ई०।... More

एक चीज़ है, जिस फ़ितरत-ए-सलीमा या मंतिक़-ए-सलीम कहा जाता है। हर वह चीज़ जो फ़ितरत-ए-सलीमा और सही अक़्ल के अनुरूप हो, वह अल्लाह की तरफ से है, जबकि हर जटिल चीज़ मानव की तरफ़ से है।... More

इस्लाम धर्म की शिक्षाएँ लचीली तथा जीवन के सभी पहलुओं को शामिल हैं, इसलिए कि यह इंसानी स्वभाव से जुड़ा हुआ है, जिसपर अल्लाह ने इंसान को पैदा किया है। यह धर्म इस स्वभाव के नियमों के अनुरूप आया है और वे (नियम निम्नलिखित) हैं :... More

मानवता के मार्गदर्शन लिए भेजे गए सभी नबियों एवं रसूलों पर ईमान, ईमान के स्तम्भों में से एक स्तम्भ है। इसके बगैर किसी का ईमान सही नहीं होता है। किसी भी नबी या रसूल का इंकार दीन की बुनियादी बातों के ख़िलाफ़ है। अल्लाह के सभी नबियों ने अंतिम रसूल -उनपर अल्लाह की शांति हो- के आने का सुसमाचार दिया था। इसी प्रकार विभिन्न समुदायों की ओर अल्लाह के द्वारा भेजे गए नबियों एवं रसूलों के नामों का उल्लेख क़ुरआन में हुआ है, जैसा कि नूह, इब्राहीम, इसमाईल, इसहाक़, याक़ूब, यूसुफ, मूसा, दाऊद, सुलैमान, ईसा आदि -उन सब पर अल्लाह की शांति अवतरित हो-। जबकि कुछ नबियों एवं रसूलों के नाम नहीं भी लिए गए हैं। यह सम्भव है कि हिन्दू एवं बौद्ध मत के कुछ धार्मिक प्रतीक जैसे राम, कृषणा और गौतम बुद्ध भी नबी हों, जिन्हें अल्लाह ने भेजा हो। परन्तु क़ुरआन में इसका कोई प्रमाण नहीं है, इस कारण मुसलमान इसकी पुष्टि नहीं करते हैं। विभिन्न धर्मों में उस समय कई अंतर प्रकट हो गए, जब लोग अपने नबियों के सम्मान में सीमा से आगे बढ़ गए और अल्लाह के सिवा उनकी इबादत करने लगे।... More

जहाँ तक फ़रिश्तों की बात है, तो यह अल्लाह की सृष्टियों में से एक महान सृष्टि हैं, जो नूर से पैदा किए गए हैं। उन्हें अच्छा करने के लिए बनाया गया है। वे अल्लाह के आदेशों का पालन करते हैं। अल्लाह की पाकी बयान करते हैं। इबादत करते हैं। न थकते हैं और न आलस्य करते हैं।... More

अस्तित्व और घटनाओं के दृष्टांत, सभी इस बात को इंगित करते हैं कि जीवन में हमेशा निर्माण और पुनर्निर्माण का काम चलता रहता है। इसके बहुत सारे उदाहरण हैं, जैसा कि धरती की मृत्यु के बाद बारिश के द्वारा उसे दोबारा जीवित किया जाना इत्यादि।... More

अल्ला मुर्दों को उसी तरह ज़िन्दा करेगा, जिस तरह उन्हें पहली बार पैदा किया है।... More

जिस प्रकार अल्लाह अपने बन्दों को एक ही समय में जीविका प्रदान करता है, उसी प्रकार वह उन का हिसाब लेगा।... More

ब्रह्मांड में सब कुछ अल्लाह के नियंत्रण में है। वह अकेला ही व्यापक ज्ञान, पूर्ण जानकारी और सब कुछ अपनी इच्छा के अधीन करने की क्षमता और शक्ति रखता है। सृष्टि की शुरुआत से ही सूर्य, ग्रह और आकाशगंगाएँ अत्यधिक सटीकता के साथ काम कर रही हैं और यह सटीकता और क्षमता मनुष्य की रचना पर समान रूप से लागू होती है। मानव शरीर और उनकी आत्माओं के बीच मौजूद सामंजस्य से पता चलता है कि इन आत्माओं का जानवरों के शरीर में वास करना संभव नहीं है और वे पौधों, कीड़ों और यहाँ तक कि लोगों के बीच भी चक्कर नहीं लगा सकतीं। अल्लाह ने मनुष्य को बुद्धि और ज्ञान से दिया है, उसे धरती पर खलीफा बनाया है, उसे श्रेष्ठता दी है, सम्मान दिया है एवं दूसरी बहुत सारी सृष्टियों पर उसके दर्ज़ा को ऊँचा किया है। सृष्टिकर्ता की हिकमत एवं न्याय की माँग यह थी कि क़यामत का दिन हो, जिस दिन अल्लाह सभी सृष्टियों को दोबारा उठाएगा और अकेला ही उनका हिसाब लेगा। फिर उसके बाद उनका ठिकाना जन्नत होगा या जहन्नम और उस दिन हर तरह के बुरे या अच्छे कामों को तौला जाएगा।... More

उदाहरण के तौर पर जब कोई व्यक्ति किसी स्टोर से कुछ खरीदना चाहे और अपने बड़े बेटे को वह चीज़ खरीदने को भेजने का फैसला करे कि उसे पहले से मालूम था कि उसका यह बेटा समझदार है, वह सीधे जाएगा और वह चीज़ खरीद लाएगा, जो उसका पिता चाहता है, जबकि उसे पता हो कि उसका दूसरा बेटा अपने साथियों के साथ खेलने लगेगा और पैसा नष्ट कर देगा। वास्तव में, यह एक कल्पना है, जिसपर पिता ने अपने निर्णय की बुनियाद रखी है।... More

जीवन का मुख्य उद्देश्य सुख की अस्थायी अनुभूति का आनंद लेना नहीं, बल्कि अल्लाह को जानकर और उसकी आराधना करके गहरी आंतरिक शांति प्राप्त करना है।... More

परीक्षा छात्रों के रैंक और ग्रेड निर्धारित करने के लिए आयोजित की जीती है, जब वे नया व्यवहारिक जीवन शुरू करते हैं। हालांकि परीक्षा छोटी चीज़ होती है, परन्तु यह आगे के नए जीवन में छात्र के भाग्य का फैसला करती है। इसी तरह, इस संसार का जीवन छोटा होने के बावजूद, मनुष्यों के लिए परीक्षण और परीक्षा के समान है, ताकि जब वे बाद के जीवन की ओर जाएँ, तो उनके ग्रेड और रैंक का निर्धारण किया जा सके। इंसान इस दुनिया से भौतिक चीज़ों के साथ नहीं, बल्कि अपने कार्यों के साथ जाता है। इंसान को समझना चाहिए कि उसे इस दुनिया में आख़िरत के जीवन और उसमें बदला पाने के लिए काम करना है।... More

इंसान को सुख अल्लाह के सामने झुकने, उसकी आज्ञा का पालन करने और उसके निर्णय और भाग्य से संतुष्ट होने से प्राप्त होता है।... More

हाँ, इस्लाम सबके लिए उपलब्ध है। हर बच्चा अपनी असली फ़ितरत पर पैदा होता है। बिना किसी मध्यस्थ के अपने अल्लाह की इबादत करने वाला (मुसलमान) होकर। माता-पिता, स्कूल या किसी धार्मिक पक्ष के हस्तक्षेप के बिना, वह वयस्क होने तक सीधे अल्लाह की इबादत करता है। फिर वह अपने कार्यों के लिए जिम्मेदार और जवाबदेह बन जाता है। वयस्क होने के बाद या तो मसीह -अलैहिस्सलाम- को अपने और अल्लाह के बीच मध्यस्थ बना लेता है और फलस्वरूप ईसाई बन जाता है, बुद्ध को मध्यस्त बना लेता है और नतीजे के तौर बौद्ध हो जाता है, कृष्ण को को मध्यस्थ बनाकर हिन्दू हो जाता है, मुहम्मद को मध्यस्थ बनाकर इस्लाम से बिल्कुल दूर हो जाता है या फिर दीन-ए-फ़तरत पर बाक़ी रहता है और एकमात्र अल्लाह की इबादत करता है। मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के द्वारा अपने रब के पास से लाए हुए संदेश का पालन करना ही सत्य धर्म है और यही धर्म सही फ़ितरत के अनुरूप भी है। उसके अतिरिक्त जो कुछ भी है, वह विकृत है, यद्यपि मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- को इंसान एवं अल्लाह के बीच मध्यस्थ बनाना ही क्यों न हो।... More

सृष्टिकर्ता की तरफ से आने वाला सत्य धर्म अनेक नहीं, केवल एक है। वह है, एक अल्लाह पर ईमान और केवल उसकी इबादत करना। उसके अतिरिक्त जितने भी धर्म हैं, सब मानव निर्मित हैं। उदाहरण स्वरूप हम भारत की यात्रा करें और लोगों के सामने कहें कि सृष्टिकर्ता एक है, तो सभी एक आवाज़ में कहेंगे कि हाँ, हाँ, सृष्टिकर्ता एक है और वास्तव में यही उनकी पवित्र पुस्तकों में लिखा हुआ भी है। [89] परन्तु एक मुख्य बिंदु पर वे मतभेद करेंगे और लड़ पड़ेंगे और हो सकता है कि एक-दूसरे की हत्या पर उतर आएँ। वह है, वह छवि और रूप जिसे धारण करके ईश्वर पृथ्वी में प्रकट होता है। उदाहरण के तौर पर भारतीय ईसाई कहेंगे ईश्वर एक है, लेकिन वह तीन व्यक्तियों (पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा) में देहधारी होता है। जबकि भारतीय हिन्दुओं में से कुछ कहेंगे कि ईश्वर जानवर, इंसान या मूर्ति के रूप में प्रकट होता है। हिंदू धर्म के (चंदुजा उपनिषद 6 : 1-2) में है: ''वह केवल एक पूज्य है, उसका कोई दूसरा नहीं है।'' (वेद, स्वेता स्वातार उपनिषद :19ः4, 20ः4, 6:9) में है : ''पूज्य के न तो पिता हैं और न ही स्वामी।'' ''उसे देखना संभव नहीं, उसे कोई आँख से नहीं देखता।'' ''उस जैसा कोई नहीं है।'' (यजुर्वेद 40:9) में है : ''अंधेरे में प्रवेश करते हैं, जो लोग प्राकृतिक तत्त्वों (वायु, जल, अग्नि आदि) की उपासना करते हैं। अंधेरे में डूबते हैं : जो संबुति (हाथ से बनी हुई चीज़ें जैसे मुर्ति एवं पत्थर आदि।) की पूजा करने वाले हैं। ईसाई धर्म में : (मैथ्यू 4:10) में है : ''उस समय यसू ने उससे कहा : जाओ हे शैतान, यह लिखा हुआ है, तेरे पूज्य रब के लिए सजदा कर और उसी की इबादत कर।'' (निर्गमन 20: 3-5) में है : ''मेरे सामने और कोई देवता न रखना। न तो अपने लिये तराशी हुई मूरत बनाना, और न कोई चित्र, न ऊपर आकाश में, न नीचे पृथ्वी पर, और न पृथ्वी के नीचे जल के अंदर। उनकी उपासना न कर। क्योंकि मैं तेरा परमेश्वर ईर्ष्यालु (गैरतमंद) पूज्य हूं, जो मुझसे बैर रखने वालों की तीसरी और चौथी पीढ़ी के पितरों के पापों को प्रायश्चित करता है।"... More

इस्लाम धर्म आह्वान, सहिष्णुता और अच्छे तरीके से की जाने वाली बहस पर आधारित है।... More

ज्ञानोदय की इस्लामी अवधारणा विश्वास और विज्ञान की ठोस नींव पर आधारित है, जो विवेक के ज्ञान और हृदय के ज्ञान को पहले अल्लाह पर ईमान के साथ और फिर विज्ञान के साथ जोड़ती है, जो ईमान से अलग नहीं हो सकता।... More

डार्विन के कुछ अनुयायी, जो प्राकृतिक चयन (एक तर्कहीन भौतिक प्रक्रिया) को एक अनूठा रचनात्मक शक्ति मानते थे, जो बिना किसी वास्तविक प्रायोगिक आधार के सभी कठिन विकासवादी समस्याओं को हल करती है। बाद में उन्होंने जीवाणु कोशिकाओं की संरचना और कार्य में डिजाइन की जटिलता की खोज की। उन्होंने "स्मार्ट" बैक्टीरिया, "माइक्रोबियल इंटेलिजेंस", "निर्णय की रचना" और "समस्या को सुलझाने वाले बैक्टीरिया" जैसे वाक्यांशों का उपयोग करना शुरू कर दिया। इस तरह बैक्टीरिया उनका नया भगवान बन गया। [104]... More

इस्लाम इस विचार को पूरी तरह से खारिज करता है और क़ुरआन ने यह स्पष्ट किया है कि अल्लाह तआला ने इंसान के सम्मान के तौर पर आदम -अलैहिस्सलाम- को दूसरी सभी सृष्टियों से अलग करके पैदा किया है, ताकि उसको धरती पर अपना ख़लीफ़ा बनाने के रब के उद्देश्य की प्राप्ति हो।... More

विज्ञान एक सामान्य वंश से विकास की अवधारणा पर ठोस सबूत प्रदान करता है, जिसका जिक्र पवित्र क़ुरआन ने किया है।... More

पवित्र क़ुरआन ने आदम -अलैहिस्सलाम- की रचना की कहानी बताकर विकासवाद की अवधारणा को ठीक किया है :... More

लोगों के बीच विभिन्न सिद्धांतों और विश्वासों के पाए जाने का मतलब यह नहीं है कि एक सच्चे सत्य का अस्तित्व नहीं है। उदाहरण के तौर पर एक काली कार के मालिक द्वारा उपयोग किए जाने वाले यातायात के साधन के बारे में लोगों की अवधारणाएं और कल्पनाएं चाहे कितनी ही क्यों न हों, इस बात का इनकार नहीं किया जा सकता कि उसके पास एक काली कार है। अब अगर पूरी दुनिया माने कि इस व्यक्ति की कार लाल है, तो यह विश्वास इसे लाल नहीं बनाता है। केवल एक ही सच्चाई है और वह यह है कि यह एक काली कार है।... More

यह अतार्किक है कि अपनी ख़्वाहिश से निर्देशित मानव निर्धारित करे कि बलात्कार बुरा है कि नहीं। यह स्पष्ट है कि बलात्कार अपने आप में मानव अधिकार का उल्लंघन और उसके महत्व एवं स्वतंत्रता को छीन लेना है। यही प्रमाण है इस बात का कि बलात्कार बुरी चीज़ है। साथ ही समलैंगिकता और शादी के अलावा रिश्ते, सार्वभौमिक मानदंडों का उल्लंघन हैं। सही ग़लत नहीं होगा यद्यपि पूरी दुनिया उसे ग़लत कहने पर उतर आए। इसी तरह ग़लत भी सूरज की तरह स्पष्ट है, यद्यपि पूरी मानव जाति उसे सही कहने पर सहमत हो जाए।... More

एक व्यापक वास्तविकता के अस्तित्व का न होना, जिसे बहुत-से लोग अपनाए हुए हैं, यह अपने आप में ऐसी चीज़ पर ईमान लाना है, जो सही भी है और ग़लत भी। वे इसे दूसरों पर लागू करने की कोशिश करते हैं। वे व्यवहार का एक मानक अपनाते हैं और सभी को इसका पालन करने के लिए मजबूर करते हैं। ऐसा करके, वे उसी चीज़ का उल्लंघन कर रहे होते हैं, जिसे वे धारण करने का दावा करते हैं। यह एक विरोधाभासी मत है।... More

अंतरिक्ष में तैर रही पृथ्वी पर मनुष्यों की उपस्थिति ऐसे ही है, जैसे विभिन्न संस्कृतियों से संबंध रखने वाले यात्री एक विमान पर एकत्र हो जाएँ और वह उन्हें अज्ञात दिशा की ओर ले जाए और यह पता न हो कि विमान को चला कौन रहा है। लोग विमान पर खुद अपनी सेवा आप करने और परेशानियों को सहन करने पर मजबूर हों।... More

उदाहरण के तौर पर क्या ईसाई यह नहीं मानते कि मुसलमान काफ़िर है, क्योंकि वह ट्रिनिटी के सिद्धांत में विश्वास नहीं रखता और उनकी मान्यता अनुसार उसपर विश्वास किए बिना (आकाश में) नेक लोगों के स्थान में प्रवेश संभव नहीं है। शब्द ''कुफ़्र'' का अर्थ सत्य का इंकार है। एक मुसलमान के लिए सत्य तौहीद (एकेश्वरवाद) है, जबिक ईसाई के लिए सत्य ट्रिनिटी है।... More

क़ुरआन सारे संसारों के रब द्वारा भेजी गई सबसे आखिरी किताब है। मुसलमान उन सभी पुस्तकों पर विश्वास रखते हैं, जो क़ुरआन से पहले उतारी गई थीं, जैसे कि इब्राहिम के स़हीफ़े, ज़बूर, तोरात और इंजील आदि। मुसलमानों का मानना है कि सभी पुस्तकों का वास्तविक संदेश तौहीद-ए-खालिस (शुद्ध एकेश्वरवाद) अर्थात एक अल्लाह पर ईमान एवं केवल उसी की इबादत था। क़ुरआन पूर्व की दूसरी आकाशीय पुस्तकों के विपरीत किसी विशेष गिरोह या जमात केंद्रित नहीं है। न इसके विभिन्न संस्करण पाए जाते हैं और न इसमें कोई बदलाव आया है, बल्कि तमाम मुसलमानों के लिए इसका एक ही संस्करण है। मूल क़ुरआन अभी भी अपनी मूल भाषा (अरबी) में है। बिना किसी बदलाव, विरूपण या परिवर्तन के، वह हमारे समय तक सुरक्षित है और ऐसा ही रहेगा। खुद सारे संसारों के रब ने उसकी सुरक्षा का वचन दिया है। यह सभी मुसलमानों के यहाँ उपलब्ध है, बहुत-से लोगों के सीने में सुरक्षित है और लोगों के पास मौजूद कई भाषाओं में क़ुरआन का वर्तमान अनुवाद, केवल उसके अर्थों का अनुवाद है। अल्लाह ने अरब और गैर-अरब सभी को इस तरह के क़ुरआन की रचना करने की चुनौती दी थी, यह जानते हुए कि उस समय के अरब भाषाज्ञान, साहित्यिक ज्ञान और कविता में दूसरों से अधिक निपुण थे। परन्तु उन लोगों को विश्वास हो गया कि इस क़ुरआन का अल्लाह के अतिरिक्त किसी और की तरफ से होना असंभव है। यह चुनौती चौदह शताब्दियों से अधिक समय से क़ायम है। परन्तु कोई भी इसे स्वीकार करने में सक्षम नहीं हुआ। यह इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण है कि कुरआन अल्लाह की किताब है।... More

यदि क़ुरआन यहूदियों के यहाँ से लिया गया होता, तो वे खुद बढ़-चढ़कर इसकी निस्बत अपनी ओर कर लेते। लेकिन क्या यहूदियों ने वह्य के उतरने के समय इस तरह का कोई दावा किया?... More

प्राचीन सभ्यताएँ सही ज्ञानों एवं बहुत सारी किंवदंतियों और मिथकों का संग्रह थीं। एक अशिक्षित नबी जो एक बंजर रेगिस्तान में पला-बढ़ा हो, इन सभ्यताओं से केवल सत्य को लेने और किंवदंतियों को छोड़ देने में कैसे सक्षम हो सकता था?... More

दुनिया में हजारों भाषाएं और बोलियां हैं। यदि उनमें से किसी भी एक भाषा में उतारा जाता, तो लोग प्रश्न करते कि दूसरी भाषा में क्यों नहीं उतारा गया? अल्लाह प्रत्येक रसूल को उसके समुदाय की भाषा में भेजता है। उसने अपने रसूल मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- को आख़िरी रसूल के तौर पर चुना, क़ुरआन को उनके समुदाय की भाषा में उतारा और उसे क़यामत के दिन तक विकृत होने से सुरक्षित रखा, जैसा कि उसने मसीह की पुस्तक के लिए आरामी भाषा को चुना।... More

नासिख़ और मंसूख़ शरीयत के आदेशों में विकास का नाम है। मसलन पूर्व के आदेश को लागू करने से रोक देना, बाद में आने वाले किसी आदेश द्वारा उसे बदल देना, मुतलक़ (अनियत) को मुक़ैयद (नियत) करना या मुक़ैयद को मुतलक़ करना। यह आदम -अलैहिस्सलाम- के युग से ही पूर्व की शरीयतों में प्रचलित है। मसलन आदम -अलैहिस्सलाम- के ज़माना में भाई का अपनी सगी बहन से शादी करना जायज़ था, लेकिन बाद की सारी शरीयतों में नाजायज़ हो गया। इसी प्रकार इब्राहीम -अलैहिस्सलाम- एवं उनके पहले की सभी शरीयतों में शनिवार के दिन काम करना सही था, फिर मूसा -अलैहिस्सलाम- की शरीयत में यह बुरा हो गया। अल्लाह तआला ने बनी इसराईल की बछड़े की इबादत के बाद उन्हें अपने आपकी हत्या करने का आदेश दिया, फिर बाद में उनसे इस आदेश को निरस्त कर दिया। इसके अलावा भी बहुत सारे उदाहरण हैं। एक आदेश को दूसरे आदेश से बदल देना एक ही शरीयत में या दो शरीयतों के बीच होता रहा है, जैसा कि हमने पिछले उदाहरणों में बयान किया।... More

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने क़ुरआन को अपने विभिन्न साथियों के हाथ में विश्वस्त एवं संकलित रूप में छोड़ा, ताकि उसे पढ़ा और दूसरों को पढ़ाया जा सके। फिर जब अबू बक्र -रज़ियल्लाहु अन्हु- ख़लीफ़ा बने, तो उन्होंने इन बिखरे हुए सहीफ़ों को एक स्थान में जमा करने का आदेश दिया, ताकि उसको स्रोत (reference) के रूप में प्रयोग किया जा सके। फिर जब उसमान -रज़ियल्लाहु अन्हु- का समय आया, तो उन्होंने विभिन्न शहरों में सहाबा के हाथों में विभिन्न शैलियों में मौजूद क़ुरआन की कॉपियों एवं सहीफ़ों को जलाने का आदेश दिया और उनके पास नई कॉपी, जो रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की छोड़ी हुई एवं अबू बक्र के द्वारा जमा की हुई असली कॉपी के अनुरूप थी, उसको भेज दिया। ताकि इस बात की गारंटी रहे कि सभी शहर रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के द्वारा छोड़ी गई एक मात्र असली कॉपी को स्रोत के रूप में इसतेमाल कर रहे हैं।... More

इस्लाम प्रयोगात्मक विज्ञान के विरुद्ध नहीं है। वास्तव में, कई पश्चिमी विद्वान जो अल्लाह में विश्वास नहीं रखते, अपनी वैज्ञानिक खोजों के माध्यम से सृष्टिकर्ता के अस्तित्व की अनिवार्यता तक पहुंच चुके हैं। इस्लाम अक़्ल और विचार के तर्क को प्रधानता देता है और ब्रह्मांड में सोच-विचार करने को कहता है।... More

नबी मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- बिन अब्दुल्लाह बिन अब्दुल मुत्तलिबब बिन हाशिम, अरब के क़बीला क़ुरैश से हैं, जो मक्का में रहता था। आप इस्माईल बिन इब्राहीम -उन दोनों पर अल्लाह की शांति हो- की नस्ल से थे।... More

मानव प्रौद्योगिकी ने एक ही क्षण में दुनिया के सभी हिस्सों में मानव आवाज और छवियों को पहुँचा दिया, तो क्या 1400 साल से अधिक पहले मानव जाति के सृष्टिकर्ता के लिए आत्मा और शरीर के साथ अपने पैगंबर को आसमान तक ले जाना संभव नहीं है? नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने जिस जानवर की सवारी की थी, उसका नाम बुराक़ है। बुराक़ एक लंबे और सफ़ेद जानवर का नाम है, जो गधे से बड़ा एवं खच्चर से छोटा होता है। जो (इतनी तेज़ छलांग लगाता है कि) अपनी दृष्टि की सीमा पर क़दम रखता है। उसकी एक लगाम एवं एक ज़ीन (काठी) होती है। अंबिया -उन सब पर अल्लाह की शांति हो- उसकी सवारी करते हैं। (यह बुख़ारी एवं मुस्लिम का वर्णन है)... More

हम सहीह बुख़ारी (जो हदीस की सबसे प्रामाणिक पुस्तक है) में रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के लिए आयशा -अल्लाह उनसे राज़ी हो- की गहरी मुहब्बत की बात पाते हैं और देखते हैं कि उन्होंने इस शादी की कभी शिकायत नहीं की।... More

बनू कुरैज़ा के यहूदियों ने वचन तोड़ा था और मुसलमानों को ख़त्म करने के लिए बहुदेववादियों का साथ दिया था। चुनांचे उनके इस षडयंत्र ने उन्हीं को नष्ट कर दिया, जब उनको धोखे एवं वचन तोड़ने का प्रतिफल दिया गया। वह भी बिल्कुल उनकी शरीयत ही के अनुसार। अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने उनको विकल्प दिया था कि वे अपने बारे में निर्णय लेने के लिए जिसको चाहें, चुन लें। चुनांचे उन्होंने आपके एक साथी को चुना था, जिन्होंने उनकी शरीयत के अनुसार किसास (बदले) का निर्णय दिया था। [153] [तारीख़-ए-इस्लाम : 2/307-318]... More

पहली आयत : ''धर्म में कोई ज़बरदस्ती नहीं है। सत्य असत्य से स्पष्ट हो चुका है।'' [154] यह आयत एक महान इस्लामी नियम को स्थापित करती है। वह नियम यह है कि धर्म के मामले में ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं है। जबकि दूसरी आयत है : ''उन लोगों से जिहाद करो, जो अल्लाह एवं आख़िरत के दिन पर ईमान नहीं रखते।'' [155] इस आयत का एक विशेष परिप्रेक्ष्य है। यह आयत उन लोगों के बारे में है, जो अल्लाह के रास्ते से रोकते हैं एवं दूसरों को इस्लाम स्वीकार करने से मना करते हैं। इस तरह देखें तो दोनों आयतों के बीच कोई विरोधाभास नहीं है। [सूरा अल-बक़रा : 256] [सूरा अल-तौबा : 29]... More

ईमान बन्दा एवं उसके रब के बीच के रिश्ते को कहते हैं। जिसने उसे काटना चाहा, उसका मामला अल्लाह के हवाले है। मगर जो इसका एलान करना चाहता है और इसे इस्लाम से लड़ने, उसके चेहरे को बिगाड़ने या उसके साथ विश्वासघात करने के ज़रिया के तौर पर लेना चाहता है, खुद मानव निर्मित जंगी क़ानूनों के अनुसार भी उसकी हत्या अनिवार्य है। इससे कोई असहमत नहीं है।... More

पैगंबर मूसा एक योद्ध थे और दाऊद भी एक योद्धा थे। मूसा और मुहम्मद ने, उन दोनों पर अल्लाह की शांति हो, राजनीतिक और सांसारिक मामलों की बागडोर संभाली और दोनों ने बुतपरस्त समुदाय से हिजरत की। मूसा -अलैहिस्सलाम- अपने समुदाय के साथ मिस्र से निकल गए और मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने यस़रिब (मदीना) की ओर प्रवास किया। इससे पहले भी आपके अनुयायियों ने हब्शा की ओर हिजरत की थी। ऐसा उन देशों के राजनीतिक और सैन्य प्रभाव से बचने के लिए किया गया था, जहां से वे अपने धर्म के साथ निकल गए थे। इसमें और मसीह -अलैहिस्सलाम- के आह्वान के बीच का अंतर यह था कि मसीह -अलैहिस्सलाम- का आह्वान गैर-बुतपरस्त लोगों के लिए था। अर्थात् यहूदियों के लिए। जबकि मूसा एवं मुहम्मद जिस माहौल (मिस्र तथा अरब) में काम कर रहे थे, वह बुतपरस्तों का था। इन दोनों जगहों की परिस्थितियाँ कहीं ज़्यादा मुश्किल थीं। मूसा एवं मुहम्मद -उन दोनों पर अल्लाह की शांति हो- के आह्वान से जिस बदलाव की आशा की जाती थी, वह एक आमूलचूल और व्यापक परिवर्तन था। बुतपरस्ती से एकेश्वरवाद की ओर एक विशाल परिवर्तन।... More

जिहाद का अर्थ है : गुनाहों से बचने के लिए अपनी आत्मा से लड़ना। गर्भावस्था का दर्द सहने के लिए गर्भावस्था में मां का संघर्ष भी जिहाद है। एक छात्र का पढ़ाई में मेहनत करना भी जिहाद है। अपने धन, सम्मान एवं धर्म की रक्षा की प्रयास भी जिहाद है। यहाँ तक कि इबादतों में धैर्य रखना जैसे कि रोज़ा रखना एवं समय पर नमाज़ पढ़ना भी जिहाद के प्रकारों में से माना जाता है।... More

यह अतार्किक है कि जीवन देने वाला, जिसे जीवन दिया गया है, उसे आदेश दे कि वह अपना या किसी निर्दोष का जीवन बिना किसी अपराध के ले ले। वह तो कहता है : ''अपने आपकी हत्या मत करो।'' [166] इसके अलावा और भी आयतें हैं, जो बिना किसी कारण, मसलन क़िसास एवं आत्म रक्षा आदि के, किसी की हत्या से रोकती हैं। केवल हूर प्राप्त करने की संकीर्ण सोच में जन्नत की नेमतों को सीमित नहीं करना चाहिए। जन्नत में ऐसी ऐसी नेमतें हैं, जिन्हें न किसी आँख ने देखा है, जिनके बारे न किसी कान ने सुना है और न जिनका ख़याल किसी मनुष्य के दिल में आया है। [सूरा अन-निसा : 29]... More

शब्द सैफ़ (तलवार) पवित्र क़ुरआन में एक बार भी नहीं आया है। वो देश जहाँ इस्लामी इतिहास ने जंगें नहीं देखीं, वहीं आज दुनिया के अधिकांश मुसलमान रहते हैं। उदाहरण के तौर पर इंडोनेशिया, भारत और चीन आदि को ले सकते हैं। इस्लाम के तलवार के ज़ोर से न फैलने का प्रमाण मुसलमानों द्वारा जीते गए देशों में आज तक ईसाइयों, हिंदुओं और अन्य लोगों का मौजूद रहना है। जबकि जिन देशों पर गैर-मुस्लिमों ने विनाशकारी युद्धों के द्वारा क़ब्जा किया और लोगों को ज़बरदस्ती अपना धर्म अपनाने पर मजबूर किया, उनमें मुसलमानों की संख्या बहुत कम है। आप सलीबी जंगों का इतिहास उठाकर देख सकते हैं।... More

मुसलमान नेक लोगों और रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के साथियों के मार्ग पर चलते हैं, उनसे मुहब्बत करते हैं, उन्हीं ही तरह नेक बनने की कोशिश करते हैं और उन लोगों की तरह ही एक अल्लाह की इबादत करते हैं। परन्तु वे उनको पवित्र नहीं मानते हैं और न ही अपने एवं अल्लाह के बीच उनमें से किसी को मध्यस्थ बनाते हैं।... More

मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- न सुन्नी थे और न शिया। आप शुद्ध मुस्लिम थे। इसी तरह ईसा -अलैहिस्सलाम- न कैथोलिक थे और न और कुछ। दोनों बिना मध्यस्थ के एक अल्लाह के बन्दे थे। ईसा ने स्वयं की इबादत की और न अपनी माँ की। इसी तरह न मुहम्मद ने अपने आपकी इबादत की और न अपनी बेटी की, न दामाद की।... More

इमाम का अर्थ वह व्यक्ति है, जो लोगों को नमाज़ पढ़ाए, उनकी देख-भाल करे या उनका नेतृत्व करे। यह कुछ खास लोगों तक सीमित धार्मिक पद नहीं है। इस्लाम में कोई जातिवाद या पुरोहितवाद नहीं है। इस्लाम धर्म सभी के लिए है। लोग अल्लाह के सामने कंघे के दांतों की तरह समान हैं। एक अरब या एक गैर-अरब के बीच कोई अंतर नहीं है। अगर है भी तो धर्मपरायणता और अच्छे कामों की बुनियाद पर। नमाज़ पढ़ाने का सबसे ज़्यादा हक़दार वह व्यक्ति है, जिसे कुरआन ज्यादा और अच्छा याद हो और जो नमाज़ से संबंधित नियमों को सबसे अधिक जानने वाला है। मुसलमानों के निकट इमाम का जो भी महत्व हो, वह किसी भी स्थिति में स्वीकारोक्ति नहीं सुनता है और पापों को क्षमा नहीं करता है, जैसा कि पादरी की स्थिति है।... More

नबी वह है जिसकी ओर वह्य (प्रकाशन) भेजी जाती है, परन्तु वह कोई नया संदेश या कार्यप्रणाली लेकर नहीं आता, जबकि रसूल वह है जिसे अल्लाह, उसके समुदाय के अनुरूप नई कार्यप्रणाली एवं शरीयत देकर भेजता है। उदाहरण स्वरूप, तौरात मूसा -अलैहिस्सलाम- पर, इंजील ईसा -अलैहिस्सलाम- पर, ज़बूर दाऊद -अलैहिस्सलाम- पर, स़हीफ़े इब्राहीम -अलैहिस्सलाम- पर तथा क़ुरआन मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- पर उतरे।... More

मानव के लिए जो उपयुक्त हो सकता है, वह उन्हीं की तरह मानव ही हो सकता है, जो उन्हीं की भाषा में उनसे बात करे और उनके लिए आदर्श हो। यदि उनकी ओर किसी फ़रिश्ते को रसूल बनाकर भेज जाता और वह कोई मुश्किल काम करता, तो लोग कहते कि फ़रिश्ता जो कर सकता है, हम कर नहीं सकते।... More

वह्य के माध्यम से सृष्टिकर्ता के सृष्टि से संबंध साधने के कुछ प्रमाणों इस प्रकार हैं :... More

मानव पिता आदम -अलैहिस्सलाम- के वर्जित पेड़ से खा लेने के कारण, उनकी तौबा स्वीकार करने के समय अल्लाह ने जो मानव को पाठ पढ़ाया, वह सारे संसारों के रब के द्वारा मानव को क्षमा करने का पहला उदाहरण था। चूँकि आदम से विरासत में मिले पाप का कोई अर्थ नहीं है, जैसा कि ईसाइ मानते हैं, इसलिए कोई किसी के गुनाह का बोझ नहीं उठाएगा। हर व्यक्ति अपने गुनाह का बोझ अकेला उठाएगा। यह हमपर अल्लाह की एक दया है कि इंसान गुनाहों से पाक-साफ़ होकर पैदा होता है और वह वयस्क होने के बाद से ही अपने कर्मों का स्वयं ज़िम्मेदार है।... More

अल्लाह जो सारे संसार का सृष्टिकर्ता है, ज़िन्दा तथा नित्य स्थायी है। बेनियाज़ एवं सक्षम है। उसे मानवता के लिए मसीह का रूप धारण करके सूली पर चढ़कर जान देने की आवश्यकता नहीं है, जैसा कि ईसाई मानते हैं। वही जीवन देता है एवं वही जीवन लेता भी है। इसलिए वह मरा नहीं है और इसी तरह वह किसी का रूप धारण करके दुनिया में आया भी नहीं था। उसने ईसा मसीह -अलैहिस्सलाम- को हत्या एवं सूली पर चढ़ाए जाने से बचाया, जिस प्रकार उसने इब्राहीम -अलैहिस्सलाम- को आग से बचाया था, मूसा -अलैहिस्सलाम- को फ़िरऔन एवं उसकी फ़ौज से बचाया था और जिस प्रकार वह हमेशा अपने नेक बन्दों की सुरक्षा और हिफ़ाज़त करता आया है।... More

एक मुसलमान पति अपनी ईसाई या यहूदी पत्नी के मौलिक धर्म, उसकी धार्मिक पुस्तक एवं उसके रसूल का सम्मान करता है। बल्कि उसका ईमान इसके बग़ैर पूरा ही नहीं होता है। वह उसे अपने धर्म को मानने की स्वतंत्रता देता है। जबकि इसके विपरीत बात सत्य नहीं है। यहूदी या ईसाई जब इस बात का विश्वास रखेंगे कि अल्लाह के अतिरिक्त कोई माबूद नहीं है एवं मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- अल्लाह के रसूल हैं, हम अपनी बेटियों की शादी उनसे कर देंगे।... More

इस्लामी सभ्यता ने अपने सृष्टिकर्ता के साथ अच्छा व्यवहार किया है और सृष्टिकर्ता और उसकी सृष्टि के बीच के संबंध को सही जगह पर रखा है। जबकि अन्य मानव सभ्यताओं ने अल्लाह के साथ अच्छा मामला नहीं किया है। उन्होंने उसका इंकार किया है, ईमान एवं इबादत में दूसरे प्राणियों को उसके साथ साझी बनाया है और उसे ऐसे स्थान पर रखा है, जो उसकी शान एवं सामर्थ्य के अनुरूप नहीं है।... More

धर्म अच्छे आचरण और बुरे कर्मों से बचने का आह्वान करता है। इस प्रकार, कुछ मुसलमानों का बुरा व्यवहार उनकी सांस्कृतिक आदतों या उनके धर्म की अज्ञानता और सच्चे धर्म से उनकी दूरी के कारण होता है।... More

पश्चिमी अनुभव मध्य युग में लोगों की क्षमताओं और दिमागों पर चर्च और राज्य के प्रभुत्व और गठबंधन की प्रतिक्रिया के रूप में आया। इस्लामिक व्यवस्था की व्यवहारिकता और तर्क को देखते हुए इस्लामी जगत ने कभी भी इस समस्या का सामना नहीं किया है।... More

मुसलमानों के पास लोकतंत्र से बेहतर व्यवस्था है, जिसे शूरा व्यवस्था (विचार विमर्श पर आधारित व्यवस्था) कहते हैं।... More

पृथ्वी पर उपद्रव का इरादा रखने वालों को रोकने और दंडित करने के लिए सीमाएँ निर्धारित की गई हैं। इसकी दलील यह है कि भूख और अत्यधिक आवश्यकता के कारण चोरी करने या ग़लती से हत्या करने के मामलों में इसे लागू नहीं किया जाता। हुदूद नाबालिग, पागल या मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति पर लागू नहीं होती हैं। यह मुख्य रूप से समाज की रक्षा के लिए हैं। जहाँ तक इसके सख़्त होने की बात है, तो यह भी समाज के हित में है। इससे समाज के लोगों को ख़ुश होना चाहिए। इन (दंडों) का अस्तित्व लोगों के लिए रहमत है, जिससे उनको सुरक्षा प्राप्त होती है। केवल अपराधी, डाकू और भ्रष्ट लोग ही इन दंडों पर आपत्ति करेंगे, क्योंकि उनको अपनी जान का ख़तरा है। इनमें से कुछ हुदूद तो मानव निर्मित क़ानूनों में भी मौजूद हैं, जैसा कि मृत्यु दंड इत्यादि।... More

इस्लाम का एक सामान्य नियम यह है कि सभी प्रकार के धन अल्लाह के हैं और लोग इसके प्रभारी मात्र हैं और धन को केवल अमीरों के बीच घूमते रहना नहीं चाहिए। इस्लाम ने ज़कात के रास्ते से फ़क़ीरों एवं मिस्कीनों के लिए एक तय प्रतिशत ख़र्च किए बिना धन इकट्ठा करने से मना किया है। ज़कात एक इबादत है जो इंसान को ख़र्च करने एवं देने के गुणों को अपनाने तथा कंजूसी एवं बखीली की भावनाओं से दूर रहने में मदद करती है।... More

उदाहरण के तौर पर इस्लाम की आर्थिक व्यवस्था और पूंजीवाद तथा समाजवाद के बीच एक सरल तुलना से यह स्पष्ट हो जाता है कि इस्लाम ने यह संतुलन कैसे सुनिश्चित किया है।... More

अतिवाद, कठोरता और असहिष्णुता यह ऐसे गुण हैं, जिनसे सच्चे धर्म ने मूल रूप से मना किया है। पवित्र क़ुरआन ने कई आयतों में व्यवहार में दया और करुणा को अपनाने और क्षमा और सहिष्णुता के सिद्धांत पर चलने का आह्वान किया है।... More

धर्म मूल रूप से लोगों को उनके द्वारा खुद पर लगाए गए कई प्रतिबंधों से राहत दिलाने के लिए आता है। उदाहरण स्वरूप, इस्लाम से पूर्व जाहिलियत के समय कई घिनौनी प्रथाएँ फैल गई थीं, जैसे लड़कियों को ज़िंदा दफ़न कर देना, कुछ प्रकार के खानों को मर्दों के लिए हलाल एवं औरतों के लिए हराम कर देना, औरतों को विरासत से महरूम कर देना, इसी तरह मुरदार खाना, व्यभिचार, शराब पीना, यतीम का माल खाना और सूदखोरी आदि दूसरे ग़लत कार्य।... More

"ऐ नबी! अपनी पत्नियों, अपनी बेटियों और ईमान वाले लोगों की स्त्रियों से कह दें कि वे अपने ऊपर अपनी चादरें डाल लिया करें। यह इसके अधिक निकट है कि वे पहचान ली जाएँ, फिर उन्हें कष्ट न पहुँचाया जाए। और अल्लाह बहुत क्षमा करने वाला, अत्यंत दयावान् है।" [205] [सूरा अल-अहज़ाब : 59]... More

यदि सर ढ़ाँपना पिछड़ापन है तो क्या आदम -अलैहिस्सलाम- के पीछे भी कोई युग है? जबसे अल्लाह ने आदम -अलैहिस्सलाम- एवं उनकी पत्नी को पैदा किया और उन्हें जन्नत में जगह दी, उसी समय से उनके लिए पर्दा एवं लिबास उपलब्ध कराया है।... More

पुरुषों और महिलाओं के बीच शारीरिक संरचना में अंतर है, इस बात पर दुनिया एकमत है। इसका एक स्पष्ट प्रमाण यह है कि पुरुषों की तैराकी के कपड़े पश्चिम में महिलाओं के कपड़ों से अलग हैं। फ़ितना को दूर करने के लिए महिला अपना पूरा शरीर ढाँपती है। क्या किसी ने कभी किसी महिला के किसी पुरुष का बलात्कार करने की घटना सुनी है? पश्चिम में महिलाएं उत्पीड़न या बलात्कार से सुरक्षित जीवन के अपने अधिकारों की मांग को लेकर प्रदर्शनों में भाग लेती रहती हैं, जबकि हमने पुरुषों द्वारा इस तरह के प्रदर्शनों के बारे में कभी नहीं सुना है।... More

मुस्लिम महिलाएं न्याय चाहती हैं, समानता नहीं। पुरुषों के साथ समानता से वह अपने कई अधिकारों और विशेषताओं को खो देंगी। मान लीजिए किसी व्यक्ति के दो पुत्र हैं। उनमें से एक की उम्र पांच साल और दूसरे की उम्र अठारह साल है। वह व्यक्ति दोनों के लिए एक-एक शर्ट खरीदना चाहता है। अब यहाँ समानता उसी स्थिति में प्राप्त होगी जब दोनों शर्ट एक ही माप की खरीदी जाए, जो दोनों के लिए परेशानी का कारण बनेगा। लेकिन न्याय यह है कि उनमें से प्रत्येक के लिए उचित माप की शर्ट खरीदी जाए। इस प्रकार दोनों खुश हो जाएँगे।... More

वैश्विक आँकड़ों के अनुसार, पुरुषों और महिलाओं का जन्म लगभग समान दर से होता है। यह वैज्ञानिक रूप से ज्ञात है कि महिला बच्चों के बचने और जीवित रहने की संभावना लड़कों की तुलना में अधिक होती है। युद्धों में पुरुषों की हत्या का प्रतिशत महिलाओं की तुलना में अधिक होता है। इसी तरह यह भी वैज्ञानिक रूप से ज्ञात है कि महिलाओं का औसत जीवनकाल पुरुषों की तुलना में अधिक होता है। नतीजतन, दुनिया में महिला विधवाओं का प्रतिशत पुरुष विधवाओं की तुलना में अधिक है। इस प्रकार हम इस निष्कर्ष पर पहुँचेंगे कि विश्व में स्त्रियों की जनसंख्या पुरुषों की जनसंख्या से अधिक है। तदनुसार, प्रत्येक पुरुष को एक पत्नी तक सीमित रखना व्यवहारिक दृष्टि से उचित नहीं हो सकता है।... More

एक बहुत ही महत्वपूर्ण बिंदु जिसे आधुनिक समाज में अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है, वह अधिकार है, जो इस्लाम ने महिलाओं को दिया है और पुरुषों को नहीं दिया है। एक पुरुष की शादी केवल अविवाहित महिलाओं तक ही सीमित है। जबकि एक महिला अविवाहित या विवाहित पुरुष से शादी कर सकती है। यह बच्चों के वास्तविक पिता के वंश को सुनिश्चित रखने और बच्चों के अधिकारों और उनके पिता से वरासत की रक्षा के लिए है। इस्लाम एक महिला को एक विवाहित पुरुष से शादी करने की अनुमति देता है, जब तक कि उसकी चार से कम पत्नियाँ हों, अगर न्याय और क्षमता की शर्त पूरी होती हो। इसलिए महिलाओं के पास पुरुषों में से चुनने के लिए अधिक विकल्प हैं। इसी प्रकार उसके पास दूसरी पत्नी के साथ होने वाले व्यवहार को जानने का अवसर भी है, ताकि वह शादी करने से पहले इस पति के चरित्र को अच्छी तरह जान सके।... More

मर्द का औरत पर पर्यवेक्षक बनाया जाना औरत का सम्मान एवं मर्द की ज़िम्मेदारी बढ़ाना है, क्योंकि मर्द औरत की देख-भाल तथा उसकी ज़रूरतों को पूरा करता है। मुस्लिम महिलाएँ रानी की भूमिका निभाती हैं, जिसकी आशा पृथ्वी की हर महिला करती है। होशियार महिला वह है, जो वही चुनती है, जो उसे होना चाहिए। या तो एक सम्मानित रानी या सड़क पर काम करने वाली एक कामगार।... More

इस्लाम से पहले, महिलाओं को विरासत से वंचित कर दिया गया था। जब इस्लाम आया, तो उसे विरासत में शामिल किया। औरत को पुरुषों की तुलना में अधिक या उनके बराबर हिस्सा भी मिलता है। कुछ हालतों में वह उत्तराधिकारी बन जाती है और पुरुष नहीं बन पाता। जबकि अन्य हालतों में रिश्तेदारी और वंश के दर्जे के अनुसार पुरुषों को महिलाओं की तुलना में अधिक अनुपात प्राप्त होता है। यही वह हालत है जिसके बारे में पवित्र क़ुरआन कहता है :... More

मुहम्मद -शांति और आशीर्वाद उनपर हो- ने अपने जीवन में कभी किसी महिला को नहीं मारा। जहाँ तक क़ुरआन की उस आयत का संबंध है, जिसमें मारने के बारे में बताया गया है, तो इसका अर्थ अवज्ञा के मामले में हल्की मार है। किसी समय संयुक्त राज्य अमेरिका के मानव निर्मित क़ानून में इस प्रकार की मार की विशेषता बयान की गई है कि ऐसी मार हो जो शरीर पर कोई प्रभाव न छोड़े। दरइसल सका सहारा उससे बड़े खतरे को रोकने के लिए लिया जाता है। जैसे कि कोई अपने बेटे को गहरी नींद से जगाने पर उसके कंधे को हिलाता है, ताकि उससे परीक्षा का समय न छूट जाए।... More

इस्लाम ने महिलाओं को आदम के पाप के बोझ से मुक्त करके उन्हें सम्मानित किया, जबकि अन्य धर्मों में उसे इससे मुक्त नहीं किया गया है।... More

व्यभिचार के अपराध के गंभीर दंड के संंबंध में यहूदी धर्म, ईसाई धर्म और इस्लाम के बीच पूर्ण सहमति है। [223] [ओल्ड टेस्टामेंट, Book of Leviticus : 20: 10 –18]... More

इस्लाम ने लोगों के बीच न्याय और नाप-तौल में निष्पक्षता स्थापित करने का आह्वान किया है।... More

"और (ऐ बंदे) तेरे पालनहार ने आदेश दिया है कि उसके सिवा किसी की इबादत न करो, तथा माता-पिता के साथ अच्छा व्यवहार करो। यदि तेरे पास दोनों में से एक या दोनों वृद्धावस्था को पहुँच जाएँ, तो उन्हें 'उफ़' तक न कहो, और न उन्हें झिड़को, और उनसे नरमी से बात करो।'' और दयालुता से उनके लिए विनम्रता की बाँहें झुकाए रखो और कहो : ऐ मेरे पालनहार! उन दोनों पर दया कर, जैसे उन्होंने बचपन में मेरा पालन-पोषण किया।" [246] [सूरा अल-इसरा : 23-24]... More

अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया है : “अल्लाह की क़सम! वह व्यक्ति मोमिन नहीं है, अल्लाह की क़सम! वह व्यक्ति मोमिन नहीं है, अल्लाह की क़सम! वह व्यक्ति मोमिन नहीं है।” पूछा गया कि ऐ अल्लाह के रसूल! यह बात आप किसके बारे में कह रहे हैं? आपने उत्तर दिया : “जिसका पड़ोसी उसकी तकलीफ़ से सुरक्षित नहीं रहता।” [249] [सहीह बुख़ारी तथा सहीह मुस्लिम]... More

''तथा धरती में न कोई चलने वाला है तथा न कोई उड़ने वाला, जो अपने दो पंखों से उड़ता है, परंतु तुम्हारी जैसी जातियाँ हैं। हमने पुस्तक में किसी चीज़ की कमी नहीं छोड़ी। फिर वे अपने पालनहार की ओर एकत्र किए जाएँगे।'' [253] [सूरा अल-अनआम : 38]... More

''तथा धरती में उसके सुधार के पश्चात् बिगाड़ न पैदा करो, और उसे भय और लोभ के साथ पुकारो। निःसंदेह अल्लाह की दया अच्छे कर्म करने वालों के क़रीब है।'' [256] [सूरा अल-आराफ़ : 56]... More

इस्लाम हमें सिखाता है कि सामाजिक कर्तव्य प्यार, दया और दूसरों के प्रति सम्मान पर आधारित होने चाहिएँ।... More

इस्लाम अनाथ के लालन-पालन करने की प्रेरणा देता है और अनाथ का लालन-पालन करने वाले से आग्रह करता है कि वह अनाथ के साथ वैसा ही व्यवहार करे जैसा वह अपने बच्चों के साथ करता है। परन्तु अनाथ का अपने असली परिवार को जानने का अधिकार सुरक्षित रखता है, ताकि उसका अपने बाप से विरासत पाने का अधिकार सुरक्षित रहे और वंश मिश्रित न हो।... More

मांस प्रोटीन का मूल स्रोत है। इसी तरह इन्सान के कुछ दाँत चिपटे और कुछ नुकीले होते हैं। ये दांत मांस चबाने और पीसने के काम आते हैं। अल्लाह ने मनुष्य को पौधों और जानवरों को खाने के लिए उपयुक्त दांत दिए हैं तथा पौधों और पशुओं से प्राप्त खाद्य पदार्थों को पचाने के लिए उपयुक्त पाचन तंत्र प्रदान किया है, जो जानवरों का खाना हलाल होने की दलील है।... More

जानवर को ज़बह करने का इस्लामी तरीक़ा, जिसमें जानवर के गले और अन्ननली को तेज चाकू से काट दिया जाता है, बिजली का झटका देकर मारने तथा दम घोंटकर मारने से अधिक दयापूर्ण तरीक़ा है। क्योंकि मस्तिष्क में रक्त का प्रवाह बंद हो जाने मात्र से पशु को दर्द महसूस होना बंद हो जाता है। जानवर को ज़बह करते समय उसका उठ खड़ा होना दर्द के कारण नहीं, बल्कि रक्त के तेज प्रवाह के कारण है। जिससे जानवर का रक्त आसानी के साथ बाहर निकल जाता है। जबकि दूसरी पद्धतियों में रक्त अंदर रुका रह जाता है, जिसके कारण उसका मांस हानिकारक हो जाता है।... More

पशु की आत्मा और मानव आत्मा के बीच एक बड़ा अंतर है। जानवर की आत्मा शरीर को हरकत देने वाली शक्ति है। जब यह मृत्यु के कारण उसके शरीर से अलग हो जाती है, तो वह एक निर्जीव लाश बन जाता है। यह भी दरअसल जीवन का एक प्रकार है। पेड़-पौधों में भी एक प्रकार का जीवन होता है, जिसे आत्मा नहीं कहा जाता है। बल्कि यह एक ऐसा जीवन है, जो पानी के माध्यम से उनके अंगों में प्रवेश करता है। फिर जब वह उससे जुदा होता है, तो वह मुरझाकर गिर जाता है।... More

यह अल्लाह की अपनी सृष्टि पर रहमत और दया है कि उसने हमें स्वच्छ चीज़ों को खाने का आदेश दिया है एवं बुरी चीजों के खाने से मना किया है।... More

इस्लाम में धन का उद्देश्य व्यापार, वस्तुओं एवं सेवाओं का आदान-प्रदान, निर्माण और आबादकारी है। अतः जब हम कमाने के उद्देश्य से धन उधार देते हैं, तो हम धन को आदान-प्रदान और विकास का साधन बनाने के बजाय उसे ही साध्य बना लेते हैं।... More

अल्लाह तआला ने अक़्ल देकर मनुष्य को अन्य सभी प्राणियों से अलग किया है और हमपर उन चीज़ों को हराम किया है, जो हमारी अक़्ल या शरीर को हानि पहुँचाएँ। इसलिए उसने हमपर हर नशा लाने वाली चीज़ को वर्जित कर दिया है, क्योंकि यह बुद्धि को भ्रष्ट कर देती है, उसे नुक़सान पहुँचाती है और उसे हर तरह के भ्रष्टाचार की ओर ले जाती है। शराब पीने वाला व्यक्ति हत्या कर सकता है, व्यभिचार कर सकता है, चोरी कर सकता है और इनके अलावा दूसरे बड़े अपराधों को भी अंजाम दे सकता है।... More

सृष्टिकर्ता के एक होने की गवाही और स्वीकृति देना और उसी की इबादत करना, साथ ही यह स्वीकार करना कि मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- उसके बन्दे एवं उसके रसूल हैं।... More

मुसलमान अपने रब के आज्ञापालन में नमाज़ पढ़ता है, जिसने उसे नमाज़ पढ़ने का आदेश दिया है एवं नमाज़ को इस्लाम के स्तंभों में से एक स्तंभ बनाया है।... More

मुसलमान पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की शिक्षाओं का पालन करता है और ठीक उसी तरह नमाज़ पढ़ता है, जैसे पैगंबर ने नमाज़ पढ़ी थी।... More

अल्लाह ने पवित्र घर काबा [297] को इबादत के लिए पहला घर और मोमिनों की एकता का प्रतीक बनाया है, जिसकी ओर सभी मुसलमान नमाज़ के समय मुँह करते हैं और इस तरह वे धरती के विभिन्न क्षेत्रों से दायरे बनाते हैं, जिनका केंद्र मक्का है। क़ुरआन हमें इबादत करने वालों के आसपास की प्रकृति की प्रतिक्रिया के कई दृश्य प्रस्तुत करता है, जैसा कि नबी दाऊद -अलैहिस्सलाम- के साथ पहाड़ों एवं परिंदों का अल्लाह की पवित्रता बयान करना एवं पवित्र किताब की तिलावत करना। ''तथा हमने प्रदान किया दाऊद को अपना कुछ अनुग्रह, हे पर्वतो! सरुचि महिमा गान करो उसके साथ तथा हे पक्षियो! तथा हमने कोमल कर दिया उसके लिए लोहा को।'' [298] इस्लाम एक से अधिक जगहों में ज़ोर देकर कहता है कि संपूर्ण ब्रह्मांड, अपनी सारी सृष्टियों सहित, सारे संसार के रब की प्रशंसा और महिमा गान करता है। अल्लाह तआला ने कहा है : [सूरा सबा : 10]... More

पूरे इतिहास में काबा का बहुत उल्लेख किया गया है। अरब प्रायद्वीप के सबसे दूरस्थ हिस्सों से भी लोग सालाना इसका भ्रमण करते और पूरे अरब प्रायद्वीप के लोग इसकी पवित्रता का सम्मान करते रहे हैं। काबा का उल्लेख ओल्ड टेस्टामेंट की भविष्यवाणियों में भी हुआ है। (बक्का की वादी में गुज़रते हुए, वहाँ झरना निकालेंगे।) [300]... More

बुतपरस्त धर्मों और कुछ निर्धारित स्थानों तथा प्रतीकों का सम्मान करने के बीच एक बड़ा अंतर है, चाहे वो धार्मिक हों या राष्ट्रीय या सामुदायिक।... More

उदाहरण के लिए, क्या हम किसी को अपने पिता के पत्र वाले लिफाफे को चूमने के लिए दोषी ठहराते हैं? हज के सभी काम अल्लाह के ज़िक्र को स्थापित करने के लिए एवं सारे संसार के रब की आज्ञाकारिता और उसके आगे समर्पण के प्रमाण के तौर पर हैं। इनसे पत्थर या किसी स्थान या व्यक्तियों की इबादत उद्देश्य नहीं है। जबकि, इस्लाम एक अल्लाह की इबादत का आह्वान करता है, जो आकाशों और धरती और उनके बीच जो कुछ है, सबका स्वामी है, हर चीज का सृष्टिकर्ता और हर वस्तु का मालिक है।... More

हज के दौरान भीड़ से मौत चंद सालों को छोड़कर नहीं हुई है। आम तौर पर भीड़ से मरने वालों की संख्या भी बहुत कम होती है। लेकिन उदाहरण स्वरूप, शराब पीने के कारण मरने वालों की संख्या लाखों में होती है। दक्षिण अमेरिका में फुटबॉल स्टेडियम रैलियों और कार्निवाल में शिकार होने वाले उससे भी अधिक हैं। वैसे भी मौत सत्य है, अल्लाह से मिलना सत्य है और अल्लाह की आज्ञाकारिता में मृत्यु अवज्ञा की मृत्यु से बेहतर है।... More

क़ुरआन में ऐसी बहुत-सी आयतें हैं, जो बन्दों के लिए अल्लाह की दया और प्रेम का उल्लेख करती हैं। परन्तु बन्दा के लिए अल्लाह की मुहब्बत बन्दों के एक-दूसरे से प्रम की तरह नहीं है। क्योंकि मानवीय मानकों में प्रेम एक ऐसी आवश्यकता है, जिसे प्रेमी तलाश करता है और उसे प्रियतम के पास पा लेता है। जबकि महान अल्लाह हम से बेनियाज़ है, हमारे लिए उसकी मुहब्बत दया और कृपा की मुहब्बत है, ताक़तवर का कमज़ोर के साथ मुहब्बत है, मालदार का फ़क़ीर के साथ मुहब्बत है, सक्षम का असहाय के लिए प्रेम है, बड़े का छोटे के साथ प्रेम है और हिकमत का प्रेम है।... More

"जब उसने अपनी जाति से कहा : क्या तुम ऐसी निर्लज्जता का काम कर रहे हो, जो तुमसे पहले संसारवासियों में से किसी ने नहीं किया है? तुम स्त्रियों को छोड़कर कामवासना की पूर्ति के लिए पुरुषों के पास जाते हो? बल्कि तुम सीमा लांघने वाली जाति हो। और उसकी जाति का उत्तर बस यह था कि इनको अपनी बस्ती से निकाल दो। ये लोग अपने में बड़े पवित्र बन रहे हैं।" [305] [सूरा अल-आराफ़ : 80-82]... More

अल्लाह उन लोगों के लिए क्षमाशील और दयालु है, जो बिना किसी जिद के और मानव स्वभाव और मनुष्य की कमज़ोरी के कारण पाप करते हैं, फिर उसके सामने तौबा करते हैं और अपने गुनाहों द्वारा अल्लाह को चुनौती नहीं देते हैं। मगर अल्लाह उसके लिए कठोर है, जो उसको चुनौती देता है, उसके अस्तित्व का इंकार करता है और उसके बुत एवं जानवर की सूरत में प्रकट होने की आस्था रखता है। इसी तरह, अल्लाह उसके लिए भी कठोर है जो अपनी अवज्ञा में आगे बढ़ता जाता है, पश्चाताप नहीं करता है और अल्लाह नहीं चाहता है कि उसे पश्चाताप की तौफ़ीक मिले। यदि कोई इंसान किसी जानवर को गाली दे, तो कोई उसे बुरा नही कहेगा, परन्तु यदि वह अपने माँ-बाप को गाली दे, तो लोग उसे सख़्त बुरा-भला कहेंगे। अब ज़रा सृष्टिकर्ता के अधिकार का अंदाज़ा लगाइए? हमें यह नहीं देखना चाहिए कि हमने कितनी छोटी अवज्ञा की है, बल्कि हमें यह देखना चाहिए कि हमने किसकी अवज्ञा की है।... More

बुराई अल्लाह की तरफ से नहीं आती है। बुराइयाँ अस्तित्वगत मामले नहीं हैं। अस्तित्व केवल अच्छाई का है।... More

सृष्टिकर्ता ने प्रकृति के नियम और उन्हें संचालित करने वाली पद्धतियाँ स्थापित कर रखी हैं। ये नियम और पद्धतियाँ किसी पर्यावरणीय असंतुलन या खराबी की स्थिति में खुद को खुद के द्वारा बचाने का काम करती हैं और पृथ्वी में सुधार और जीवन को बेहतर तरीके से जारी रखने के उद्देश्य से इस संतुलन के अस्तित्व को बनाए रखती हैं। दरअसल वही चीज़ पृथ्वी पर ठहरती और बाक़ी रहती है, जो लोगों और जीवन के लिए लाभकारी होती है। जब पृथ्वी पर मनुष्यों को प्रभावित करने वाली आपदाएँ, जैसे बीमारियाँ, ज्वालामुखी, भूकंप और बाढ़ आदि आती हैं, तो उनके माध्यम से अल्लाह के कुछ नाम और गुण, जैसे शक्तिशाली, शिफ़ा देने वाला और रक्षक आदि प्रकट होते हैं। उसका नाम न्याय करने वाला किसी अत्याचारी या पापी को सज़ा देते समय प्रकट होता है और उसका नाम हकीम निष्पाप व्यक्ति को आज़माते समय प्रकट होता है, जिसे आज़माइश के समय सब्र करने पर अच्छा बदला मिलेगा तथा सब्र न करने पर यातना का सामना करना पड़ेगा। इन आज़माइशों के माध्यम से इंसान अपने रब की महानता को एवं उसके दिए हुए उपहारों के माध्यम से उसके जमाल (सौंदर्य) को जान पाता है। यदि इंसान केवल अल्लाह के ख़ूबसूरत नामों एवं गुणों को जाने तो वह अल्लाह को पूरी तरह जान नहीं पाएगा।... More

अल्लाह के अस्तित्व को नकारने के बहाने के रूप में इस सांसारिक जीवन में बुराई के अस्तित्व के कारण के बारे में प्रश्न करने वाला, हमारे सामने अपनी अदूरदर्शिता, उसके पीछे की हिकमत के संबंध में अपने विचार की कमज़ोरी और अंतरतम चीजों के बारे में जागरूकता की कमी को प्रकट करता है। जबकि नास्तिकों ने भी अपने प्रश्न के ज़िम्न में यह स्वीकार किया है कि बुराई एक अपवाद है।... More

उदाहरण के तौर पर जो व्यक्ति अपने माता-पिता का तिरस्कार करता है, उनका अपमान करता है, उन्हें घर से बाहर निकाल देता है और उन्हें सड़क पर डाल देता है, हम उस व्यक्ति के बारे में क्या महसूस करेंगे?... More

कई अपराधों में उम्रकैद की सजा होती है। क्या कोई है जो कहता है कि उम्रकैद की सजा अनुचित है, क्योंकि अपराधी ने कुछ ही मिनटों में अपना अपराध किया? क्या दस साल की सजा अन्यायपूर्ण है, क्योंकि अपराधी ने केवल एक वर्ष के लिए धन का गबन किया है? दंड अपराधों की अवधि से संबंधित नहीं होते हैं, बल्कि अपराधों के आकार और उनकी गंभीरता से संबंधित होते हैं।... More

माँ अपने बच्चों को यात्रा या काम पर जाते समय आते-जाते अपना ध्यान रखने की चेतावनी देकर बहुत थका देती है, तो क्या वह एक क्रूर माँ मानी जाती है? यह मामला को उलटा पेश करने का मामला है, जो दया को क्रूरता में बदल देता है। अल्लाह अपने बंदों को सचेत करता है, उनके प्रति अपनी दया के कारण उन्हें चेतावनी देता है और उन्हें मुक्ति के मार्ग पर ले जाता है। जब वे उसके सामने पश्चाताप करते हैं, तो उसने उन्हें उनके बुरे कामों को अच्छे कामों से बदलने का वादा किया है।... More

अल्लाह तआला ने अपने सभी बन्दों को मुक्ति का मार्ग दिखाया है और वह उनके लिए अविश्वास को पसंद नहीं करता है। साथ ही वह ग़लत व्यवहार को पसंद नहीं करता है, जो इंसान कुफ़्र एवं धरती पर बिगाड़ के द्वारा करता है।... More

हमें ईमान एवं सारे संसारों के रब के प्रति समर्पण के बीच अंतर करना होगा।... More

इस ब्रह्मांड के चारों ओर तलाश करना एवं ज्ञान प्राप्त करना मनुष्य का अधिकार है। अल्लाह ने हमें यह बुद्धि इसलिए दी है, ताकि हम इसका प्रयोग करें, न कि इसे बेकार छोड़ दें। जो भी व्यक्ति अपनी बुद्धि का उपयोग किए बिना या अपने पितरों के धर्म का विश्लेषण किए बिना उसका पालन करता है, वह अपने आपपर अत्याचार करता है, खुद अपना तिरस्कार करता है और अल्लाह की दी हुई अक़्ल जैसी एक बहुत बड़ी नेमत का तिरस्कार करता है।... More

इन लोगों पर महान अल्लाह अत्याचार नहीं करेगा, मगर क़यामत के दिन उनकी परीक्षा लेगा?... More

इन आयतों में जीवन की यात्रा के अंत और सुरक्षित स्थान तक पहुंचने का सार बताया गया है।... More