उत्तर- आयतुल कुर्सी पढ़ें: "अल्लाहु ला इलाहा इल्ला हुवल-ह़य्युल क़य्यूम ला तअख़ुज़ुहु सिनतुन वला नौम लहू माफ़िस समावाति वमा फ़िल-अर्ज़ि मन ज़ल्लज़ी यशफ़उ इंदहू इल्ला बि-इज़निही यअलमु मा बैना ऐदीहिम वमा ख़लफ़हुम वला युहीत़ूना बि शैईम मिन इल्मिही इल्ला बिमा शाआ वसिआ कुर्सिय्युहुस् समावाती वल-अर्ज़ि वला यऊदुहू हिफ़ज़ुहुमा वहुवल अलिय्युल अज़ीम", जिसका अनुवाद हैः "अल्लाह के सिवा सत्य कोई पूज्य नहीं, वह सदा ज़िन्दा एवं कायनात की तदबीर करने वाला है। उसे ऊँघ या नींद नहीं आती। आकाश और धरती में जो कुछ है, सब उसी का है। कौन है, जो उसके पास उसकी अनुमति के बिना अनुशंसा (सिफ़ारिश) कर सके? जो कुछ उनके समक्ष और जो कुछ उनसे ओझल है, वह सब जानता है। लोग उसके ज्ञान में से उतना ही जान सकते हैं, जितना वह चाहे। उसकी कुर्सी आकाश तथा धरती को समोए हुए है। उन दोनों की रक्षा उसे नहीं थकाती। वही सर्वोच्च एवं महान है"। [सूरा अल-बक़रा: 255] 2- फिर बिस्मिल्लाहिर्रह़मानिर्रह़ीम "शुरू अल्लाह के नाम से, जो बड़ा दयालु एवं बड़ा कृपावान है" कह कर सूरा इख़्लास़ पढ़ेंः (क़ुल हुवल्लाहु अह़द) "आप कह दीजिए कि वह अल्लाह एक है"। (अल्लाहुस़्स़मद) "अल्लाह बेनियाज है"। (लम यलिद व लम यूलद) "न उस ने (किसी को) जना है, और न (किसी ने) उसको जना है"। (व लम यकुल लहु कुफ़ुवन अह़द) "और न उसके बराबर कोई है"। तीन बार। फिर बिस्मिल्लाहिर्रह़मानिर्रह़ीम (अल्लाह के नाम से, जो अत्यंत दयावान्, असीम दयालु है) पढ़ कर सूरा फ़लक़ पढ़ेंः (क़ुल अऊज़ु बि रब्बिल फ़लक़) "(ऐ नबी!) कह दीजिए कि मैं सुबह के रब की शरण में आता हूँ"। (मिन शर्रि मा ख़लक़) "उस चीज़ की बुराई से, जो उसने पैदा की है"। (मिन शर्रि मा ख़लक़) "उस चीज़ की बुराई से, जो उसने पैदा की है"। (व मिन शर्रिन नफ़्फ़ास़ाति फ़िल उक़द) "तथा गाँठों में फूँकने वालियों की बुराई से"। (व मिन शर्रि ह़ासिदन इज़ा ह़सद) "तथा ईर्ष्या करने वाले की बुराई से, जब वह ईर्ष्या करे"। तीन बार। फिर बिस्मिल्लाहिर्रह़मानिर्रह़ीम (अल्लाह के नाम से, जो अत्यंत दयावान्, असीम दयालु है) कहने के पश्चातः सूरा नास पढ़ेंः (क़ुल अऊज़ु बि रब्बिन्नासि) "(ऐ नबी!) कह दीजिए कि मैं शरण में आता हूँ मनुष्यों के रब की "। (मलिकिन्नासि) "और लोगों के मालिक की"। (इलाहिन्नासि) "और लोगों के माबूद की"। (मिन शर्रिल वसवासिल ख़न्नासि) "भ्रम डालने वाले और छुप जाने वाले की बुराई से"। (अल्लज़ी युवसविसु फ़ी स़ुदूरिन्नासि) (जो लोगों के दिलों में भ्रम डालता है)। (मिनल जिन्नति वन्नासि) (जो जिन्नों में से है और मनुष्यों में से भी)। तीन बार। अल्लाहुम्मा अन्ता रब्बी ला इलाहा इल्ला अन्ता खलक़तनी व अना अब्दुका, व अना अला अहदिका व वअदिका मसतात़अतु अऊज़ु बिका मिन शर्रि-मा स़नअतु अबूउ लका बि निअमतिका अलैया व अबूउ बि ज़न्बी फग़फ़िर ली फ़इन्नहु ला यग़फ़िरुज़-ज़ुनूबा इल्ला अन्ता, "ऐ अल्लाह! तू ही मेरा रब है। तेरे सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं है। तूने ही मेरी रचना की है और मैं तेरा बंदा हूँ। मैं तुझसे की हुई प्रतिज्ञा एवं वादे को हर संभव पूरा करने का प्रयत्न करूँगा। मैं अपने हर उस कुकृत्य से तेरी शरण में आता हूँ, जो मैंने किया है। मैं तेरी ओर से दी जाने वाली नेमतों (अनुग्रहों) का तथा अपनी ओर से किए जाने वाले पापों का इक़रार करता हूँ। तू मुझे माफ कर दे, क्योंकि तेरे सिवा पापों को क्षमा करने वाला कोई नहीं है"। इसे बुख़ारी ने रिवायत किया है।