उत्तर- इस्राफ़: अर्थात फ़िजूल ख़र्ची, धन को बिना ज़रूरत के ख़र्च करना है।
इसके विपरीत कंजूसी है, जो ज़रूरत पर भी ख़र्च न करने को कहते हैं।
सही रास्ता इन दोनों के बीच है, और यह कि मुसलमान को खुले हाथ वाला होना चाहिए।
अल्लाह तआला फ़रमाता हैः (وَٱلَّذِينَ إِذَاۤ أَنفَقُوا لَمۡ يُسۡرِفُوا وَلَمۡ يَقۡتُرُوا وَكَانَ بَيۡنَ ذَ لِكَ قَوَامًا) ''तथा जो खर्च करते समय फ़िज़ूल-खर्ची नहीं करते और न कंजूसी करते हैं। और वह इसके बीच संतुलित राह अपनाते हैं''। [सूरा अल-फ़ुरक़ान: 67]