उत्तर: - अल्लाह तआला से मुहब्बत।
अल्लाह तआला फ़रमाता हैः (وَالَّذِينَ آَمَنُوا أَشَدُّ حُبًّا لِلَّهِ) ''और ईमान वाले अल्लाह से अत्यंत मुहब्बत करते हैं''। [सूरा अल-बक़रा: 165]
- रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से मुहब्बत।
आप -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया: क़सम है उस अल्लाह की जिसके हाथ में मेरी जान है, तुम में से कोई उस समय तक (पूर्ण) मोमिन नहीं हो सकता है जब तक कि उसके निकट मैं उसके माता-पिता एवं औलाद से अधिक प्रिय न हो जाऊँ''। इसे बुख़ारी ने रिवायत किया है।
मोमिनों से मुहब्बत, और इस तरह कि उनके लिए वही पसंद करे जो अपने लिए पसंद करता है।
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया है: "कोई व्यक्ति उस समय तक (मुकम्मल) मोमिन नहीं हो सकता जब तक कि वह अपने भाई के लिए वही चीज न चाहे जो अपने लिए चाहता है"। इसे बुख़ारी ने रिवायत किया है।