उत्तर- सूरा अन-नास और उसकी तफ़सीर:
अल्लाह के नाम से, जो अत्यंत दयावान्, असीम दयालु है।
"(ऐ नबी!) कह दीजिए कि मैं मनुष्यों के रब की शरण में आता हूँ। जो समस्त इन्सानों का स्वामी है। जो सारे लोगों का पूज्य है। भ्रम डालने वाले और छुप जाने वाले की बुराई से। जो लोगों के सीनों में भ्रम डालता है। जो जिन्नों में से है और मनुष्यों में से भी। [सूरा अन-नास: 1-6]
तफ़सीर (व्याख्या):
1- ''क़ुल अऊज़ु बिरब्बिन नासि'', आप कह दें, हे रसूल! मैं लोगों के रब को मज़बूती के साथ पकड़ता हूँ एवं उसकी शरण में आता हूँ।
2- ''मलिकिन नास'' अर्थातः वह लोगों का बादशाह है, वह उनके साथ जो चाहता है करता है। उसके सिवा उनका कोई बादशाह नहीं है।
3- ''इलाहिन नासि'', जो लोगों का सच्चा माबूद है, उसके अतिरिक्त उन लोगों का कोई सत्य पूज्य नहीं है।
4- ''मिन शर्रिल वसवासिल ख़न्नासि'', शैतान की बुराई से जो लोगों को भटकाते हैं।
5- ''अल्लज़ी युवसविसु फ़ी स़ुदूरिन नासि'', लोगों के दिलों में भ्रम डालते हैं।
6- ''मिनल जिन्नति वन्नासि'', अर्थात यह भ्रमित करने वाले इंसानों में से होते हैं एवं जिन्नों में से भी।