उत्तर- ''أَسْـتَغْفِرُ الله'' (हे अल्लाह! हम तेरी क्षमा चाहते हैं) तीन बार कहे।
फिर कहेः «اللّهُـمَّ أَنْـتَ السَّلامُ، وَمِـنْكَ السَّلام، تَبارَكْتَ يا ذا الجَـلالِ وَالإِكْـرام» ''ऐ अल्लाह! तू ही सुरक्षा तथा शांति का मालिक है और तेरी ही ओर से सुरक्षा एवं शांति प्राप्त होती है। हे प्रताप और सम्मान के आधिपत्य वाले ! तू बड़ी बरकतों वाला है"।
«لا إلهَ إلاّ اللّهُ وحدَهُ لا شريكَ لهُ، لهُ المُـلْكُ ولهُ الحَمْد، وهوَ على كلّ شَيءٍ قَدير، اللّهُـمَّ لا مانِعَ لِما أَعْطَـيْت، وَلا مُعْطِـيَ لِما مَنَـعْت، وَلا يَنْفَـعُ ذا الجَـدِّ مِنْـكَ الجَـد» "अल्लाह के सिवा कोई सच्चा पूज्य नहीं है, वह अकेला है, उसका कोई साझी नहीं है, उसी की बादशाहत है और उसी के लिए समस्त प्रशंसा है और वह हर काम में सक्षम है। ऐ अल्लाह! जो कुछ तू दे उसे कोई रोकने वाला नहीं है, और जो कुछ तू रोक ले, उसे कोई देने वाला नहीं है, तथा किसी प्रतिष्ठावान व्यक्ति की प्रतिष्ठा तेरे यहाँ कुछ काम नहीं दे सकती"।
«لا إلهَ إلاّ الله، وحدَهُ لا شريكَ لهُ، لهُ الملكُ ولهُ الحَمد، وهوَ على كلّ شيءٍ قدير، لا حَـوْلَ وَلا قـوَّةَ إِلاّ بِاللهِ، لا إلهَ إلاّ الله، وَلا نَعْـبُـدُ إِلاّ إيّـاه، لَهُ النِّعْـمَةُ وَلَهُ الفَضْل وَلَهُ الثَّـناءُ الحَـسَن، لا إلهَ إلاّ الله مخْلِصـينَ لَـهُ الدِّينَ وَلَوْ كَـرِهَ الكـافِرون» "अल्लाह के सिवा कोई सच्चा पूज्य नहीं है, वह अकेला है, उसका कोई साझी नहीं है, उसी की बादशाहत है, और उसी की सब प्रशंसा है, और वह हर काम में सक्षम है। अल्लाह के अतिरिक्त न कोई भलाई का सामर्थ्य प्रदान कर सकता है और न बुराई से रोकने की क्षमता रखता है। अल्लाह के सिवा कोई सच्चा उपास्य नहीं है, हम केवल उसी की उपासना करते हैं, उसी की सब नेमतें हैं, और उसी का सब पर उपकार है, और उसी के लिए समस्त अच्छी प्रशंसाएँ हैं। अल्लाह के सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं है, हम उसी के लिए धर्म को विशुद्ध करते हैं, चाहे ये बात काफिरों को नागवार (अप्रिय) लगती हो"।
तैंतीस बार ''سُـبْحانَ اللهِ'' (सुब्हान अल्लाह),
तैंतीस बार ''الحَمْـدُ لله'' (अल्हम्दुलिल्लाह),
तैंतीस बार ''اللهُ أكْـبَر'' (अल्लाहु अकबर) कहे,
फिर एक सौ पूरा करने के लिए कहे: "لا إله إلا الله وحده لا شريك له، له الملك وله الحمد، وهو على كل شيء قدير'' (अल्लाह के अतिरिक्त कोई सत्य पूज्य नहीं, वह अकेला है, उसका कोई साझी नहीं, उसी के लिए राज्य और उसी के लिए सब प्रशंसा है और वह प्रत्येक चीज़ का सामर्थ्य रखता है)।
फ़ज्र तथा मग़्रिब की नमाज़ के बाद तीन बार एवं अन्य नमाज़ों के बाद एक बार सूरा इख़लास़ एवं मुव्वज़ात (क़ुल अऊज़ु बि रब्बिल फ़लक़ एवं क़ुल अऊज़ु बि रब्बिन्नास) पढ़े।
एक बार आयतुल कुर्सी पढ़े।