उत्तर- नमाज़ पढ़ने का नियम:
1- अपने पूरे शरीर के साथ सीधी तरह क़िबला रुख हो, बिना किसी विचलन या मोड़ के।
2- फिर ज़बान से कहे बिना उस नमाज़ की दिल में निय्यत करना जो नमाज़ वह पढ़ना चाहता है।
3- फिर तकबीर-ए-तहरीमा अर्थात ''अल्लाहु अकबर'' कहते हुए अपने दोनों हाथों को अपने दोनों कंधों तक उठाना।
4- फिर अपनी छाती के ऊपर अपने दाहिने हाथ की हथेली को अपने बाएं हाथ की हथेली के ऊपर रखे।
5- फिर नमाज़ शुरू करने की दुआ पढ़े, और कहे: अल्लाहुम्मा बाइद बैनी व बैना खतायाया कमा बाअत्ता बैनलमशरिक़ि वलमग़रिबि,अल्लाहुम्मा नक़्क़िनी मिन खतायाया कमा युनक़्क़स् स़ौबुल अब्यज़ु मिनद्दनसि,अल्लाहुम्मग्सिलनी मिन खतायाया बिलमाइ वस्सल्जि वल्बरद्" (हे अल्लाह! मेरे और मेरे पापों के मध्य वैसी दूरी करदे,जैसी तूने पूर्व और पश्चिम के बीच दूरी कर दी है, हे अल्लाह! मुझे पापों से ऐसे साफ सुथरा करदे जिस प्रकार सफ़ेद कपड़ा मैल कुचैल से साफ़ किया जाता है, हे अल्लाह! मुझे मेरे पापों से जल, बर्फ और ओले के द्वारा धो दे)।
या यह दुआ कहेः ''सुब्हानका अल्लाहुम्मा व बि हम्दिका, व तबारकस्मुका, व तआला जद्दुका, व ला इलाहा ग़ैरुका''। (तू पवित्र है ऐ अल्लाह! हम तेरी प्रशंसा करते हैं, तेरा नाम बरकत वाला है, तेरी महिमा उच्च है तथा तेरे सिवा कोई सच्चा पूज्य नहीं है)।
6- फिर तअव्वुज़ पढ़े अर्थात यों कहेः अऊज़ुबिल्लाहि मिनश् शैतानिर रजीम'' (मैं बहिष्कृत शैतान से अल्लाह की शरण में आता हूं)। 7- फिर बिस्मिल्लाह कहे एवं सूरा फ़ातिहा पढ़े, अर्थात यों कहेः बिस्मिल्लाहिर्रह़मानिर्रह़ीम ("शुरू करता हूँ अल्लाह के नाम से जो बड़ा दयालु एवं अति कृपावान है।") (الْحَمْدُ للّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ) "सारी प्रशंसा अल्लाह ही के लिए है, जो सारे संसारों का रब है। (الرَّحْمـنِ الرَّحِيمِ) "जो अत्यंत कृपाशील तथा दयावान है"। (مَالِكِ يَوْمِ الدِّينِ) "जो प्रतिकार (बदले) के दिन का मालिक है"। (إِيَّاكَ نَعْبُدُ وإِيَّاكَ نَسْتَعِينُ) "(हे अल्लाह) हम तेरी ही उपासना करते हैं तथा तुझ ही से सहायता माँगते हैं"। (اهدِنَــــا الصِّرَاطَ المُستَقِيمَ) "हमें सुपथ (सीधा मार्ग) दिखा"। (صِرَاطَ الَّذِينَ أَنعَمتَ عَلَيهِمْ غَيرِ المَغضُوبِ عَلَيهِمْ وَلاَ الضَّالِّينَ ) "उनका मार्ग, जिनपर तूने पुरस्कार किया, उनका नहीं, जिन पर तेरा प्रकोप हुआ और न ही उनका, जो कुपथ (गुमराह) हो गए''। [सूरा अल-फ़ातिहा: 1-7]
फिर कहेः ''आमीन'' अर्थात: हे अल्लाह! तू क़बूल कर ले।
8- फिर क़ुरआन से जो भी याद हो पढ़े, सुबह की नमाज़ में अधिक क़ुरआन पढ़े।
9- फिर रुकूअ करे, अर्थात अल्लाह के सम्मान में पीठ झुकाए, एवं रुकूअ करते समय तकबीर कहे तथा अपने दोनों हाथों को अपने दोनों कंधों के बराबर उठाए। सुन्नत यह है कि अपनी पीठ को सीधी रखे, सिर को आगे की ओर रखे, एवं अपने दोनों होथों को उनकी उंगलियों को फैलाए हुए दोनों घुटनों पर रखे।
10- रुकूअ में तीन बार कहे: ''سبحان ربي العظيم'' (हे हमारे पाक रब! हम तेरी ही पाकी बयान करते हैं) और यदि ''سبحانك اللهم وبحمدك، اللهم اغفر لي'' (पवित्र है तू ऐ अल्लाह! अपनी प्रशंसा के साथ, हे अल्लाह! तू मुझे क्षमा कर दे) की वृद्धि करे तो उत्तम है।
11- फिर रुकूअ से ''سمع الله لمن حمده'' कहते हुए अपना सर उठाए, और अपने हाथों को अपने दोनों कंधों तक उठाए। परन्तु मुक़्तदी लोग (जो इमाम के पीछे नमाज़ पढ़ रहे हों) वे ''سمع الله لمن حمده'' न कहें, बल्कि उसके बदले ''ربنا ولك الحمد'' कहें।
12- फिर सर उठाने के बाद कहे: ''ربنا ولك الحمد، ملء السماوات والأرض، وملء ما شئت من شيء بعد'' (ऐ अल्लाह! हमारे रब! तेरी प्रशंसा है, आकाशों के बराबर, ज़मीन के बराबर और इसके बाद तू जो चाहे, उसके बराबर)
13- फिर पहला सज्दा करे, एवं सज्दा करते समय ''अल्लाहु अकबर'' कहे, तथा सात अंगों पर सज्दा करे: पेशानी (ललाट) और नाक, दोनों हथेली, दोनों घुटने तथा दोनों पैर के किनारे। अपने दोनों बाज़ुओं को अपने दोनों किनारों (पहलू, पसली) से दूर रखे, अपने दोनों हाथों को धरती पर न बिछाए, और अपनी उंगलियों के सिरों को क़िबला रुख रखे।
14- और अपने सज्दों में तीन बार कहे: ''سبحان ربي الأعلى'' (हे हमारे उच्च रब! हम तेरी ही पाकी बयान करते हैं) और यदि ''سبحانك اللهم وبحمدك، اللهم اغفر لي'' की वृद्धि करे तो उत्तम है।
15- फिर सज्दा से अपने सर को ''अल्लाहु अकबर'' कहते हुए उठाए।
16- फिर दोनों सज्दों के बीच अपने बायां पैर पर बैठे एवं दायां पैर खड़ा रखे, अपना दायां हाथ घुटना के क़रीब अपने दायें जाँघ पर रखे, अनामिका एवं कनिष्ठा उंगलियों को मुट्ठी के आकर में कर ले, तर्जनी को खड़ी कर ले एवं दुआ कहते हुए उस से इशारा करे, एवं अंगूठा तथा मध्यमा उंगलियों से एक दायरा बनाए। जबकि बायां हाथ बाईं जांघ के घुटने के क़रीब, उंगलियों को फैलाते हुए रखे।
17- दोनों सज्दों के बीच की बैठक में दुआ पढ़ेः वह दुआ इस प्रकार है: "رب اغفر لي وارحمني واهدني وارزقني وعافني" अर्थात, ऐ मेरे रब!, मुझे क्षमा कर दे, मुझपर कृपा कर, मेरा मार्गदर्शन कर, मुझे रोज़ी दे और मुझे कुशल- मंगल रख।
18- फिर पहले सज्दा की तरह दूसरा सज्दा करे, तथा इसमें वही कहे एवं करे जो पहले में कहा तथा किया था, एवं तकबीर कहते हुए सज्दा करे।
19- फिर तकबीर अर्थात अल्लाहु अकबर कहते हुए दूसरे सज्दा से उठे, और पहली रक्अत की तरह ही दूसरी रक्अत पढ़े, नमाज़ शुरू करने की दुआ के सिवा वही कहे एवं करे, जो पहली रक्अत में कहा एवं किया था।
20- फिर दूसरी रक्अत समाप्त करने के बाद तकबीर कहते हुए बैठे, उसी प्रकार जिस प्रकार दोनों सज्दों के बीच बैठा था।
21- इस बैठक में तशह्हुद पढ़े, अतः यों कहे: अत्तहिय्यातो लिल्लाहि, वस्सला-वातो, वत्तैयिबातो, अस्सलामो अलैका अय्युहन्नबिय्यु व रहमतुल्लाहि व बरकातुहू, अस्सलामो अलैना व अला इबादिल्लाहिस्सालिहीन, अश्हदु अल ला इलाहा इल्लल्लाहु, व अश्हदु अन्ना मुहम्मदन अब्दुहू व रसूलुहू "(हर प्रकार का सम्मान, समग्र दुआ़एँ एवं समस्त अच्छे कर्म व अच्छे कथन अल्लाह के लिए हैं। हे नबी! आपके ऊपर सलाम, अल्लाह की कृपा तथा उसकी बरकतों की वर्षा हो, हमारे ऊपर एवं अल्लाह के भले बंदों के ऊपर भी सलाम की जलधारा बरसे, मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवाय कोई सत्य माबूद (पूज्य) नहीं एवं मुहम्मद अल्लाह के बंदे तथा उस के रसूल हैं)। अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मद, व अला आले मुहम्मद, कमा सल्लैता अला इब्राहीमा व अला आले इब्राहीम, इन्नका हमीदुम मजीद, अल्लाहुम्मा बारिक अला मुहम्मद, व अला आले मुहम्मद, कमा बारक्ता अला इब्राहीमा व अला आले इब्राहीम, इन्नका हमीदुम मजीद (हे अल्लाह! मुहम्मद एवं उनकी संतान-संतति पर उसी प्रकार से शांति उतार, जिस प्रकार से तूने इब्राहीम एवं उनकी संतान-संतति पर शांति उतारी थी। निस्संदेह तू प्रशंसा योग्य तथा सम्मानित है। (ऐ अल्लाह!) मुहम्मद तथा उनकी संतान-संतति पर उसी प्रकार से बरकतों की बारिश कर, जिस प्रकार से तूने इब्राहीम एवं उनकी संतान-संतति पर की है। निस्संदेह तू प्रशंसा योग्य तथा सम्मानित है)"। फिर इस दुनिया एवं इस दुनिया के बाद की दुनिया (लोक परलोक) की भलाई में से जो उसे पसंद हो, उसकी अल्लाह से प्रार्थना करे।
22- फिर अपनी दायीं ओर ''السَّلام عليكم ورحمة الله'' कहते हुए सलाम फेरे, और इसी प्रकार से बायीं ओर।
23- यदि नमाज़ तीन या चार रक्अतों वाली हो, तो पहले तशह्हुद के अन्त पर रुक जाएगा, और वह है: ''أشهد أن لا إله إلا الله، وأشهد أن محمداً عبده ورسوله'' तक।
24- फिर ''अल्लाहु अकबर'' कहते हुए उठ जाएगा, एवं अपने दोनों हाथों को दोनों कंधों के बराबर उठायेगा।
25- फिर दूसरी रक्अत की तरह ही शेष नमाजों को पढ़ेगा, परन्तु ध्यान रहे कि इन रक्अतों में केवल सूरा फ़ातिहा ही पढ़ेगा।
26- फिर तवर्रुक करते हुए बैठेगा, और वह इस तरह है कि अपने बायां पैर को दायीं पिंडली के नीचे से निकालेगा, एवं धरती पर चूतड़ टिका कर बैठेगा, और अपने हाथों को जांघों के ऊपर उसी प्रकार से रखेगा जिस प्रकार से पहले तशह्हुद में रखा था।
27- इस बैठक में पूरा तशह्हुद पढ़ेगा।
28- फिर अपनी दायीं ओर ''السَّلام عليكم ورحمة الله'' कहते हुए सलाम फेरेगा, और उसी प्रकार बायीं ओर।