उत्तर- नमाज़ की ग्यारह सुन्नतें हैं, और वह इस प्रकार हैं:
1- तकबीर-ए-तहरीमा कहने के बाद नमाज़ शुरू करने की दुआ पढ़ेंगे: ''सुब्हानका अल्लाहुम्मा व बि हम्दिका, व तबारकस्मुका, व तआला जद्दुका, व ला इलाहा ग़ैरुका''।
2- तअव्वुज़ अर्थात ''अऊज़ुबिल्लाहि मीनश् शैतानिर रजीम'' पढ़ेंगे।
3- बस्मला अर्थात ''बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम'' पढ़ेंगे।
4- आमीन कहना,
5- सूरह फ़ातिहा के बाद कोई दूसरा सूरह पढ़ना,
6- इमाम का आवाज़ के साथ क़ुरआन पढ़ना,
तहमीद (अर्थातः रब्बना व लक् अल्ह़मद) के बाद ''मिल्अस् समावाति व मिल्अल अरज़ि, व मिल्अ मा शिअ्त मिन शयइन बादु'' कहना,
8- रुकूअ की तसबीह में (एक बार से अधिक) जितना ज़्यादा पढ़ा जाए, दो बार, तीन बार या उससे अधिक बार,
9- सज्दों की तसबीह में (एक बार से अधिक) जितनी बार अधिक पढ़ा जाए,
10- दोनों सज्दों के बीच ''रब्बिग़्फ़िर ली'' को जितनी अधिक बार पढ़ा जाए,
11- अंतिम तशह्हुद में मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर तथा उनकी औलाद पर शांति एवं बरकत की दुआ भेजना, फिर उसके बाद दुआ करना।
चौथी बात, अफ़आल अर्थात कार्यों में सुन्नत, जिन्हें हैअत अर्थात कैफीयत कहा जाता है।
1- तकबीर-ए-तहरीमा के साथ दोनों हाथों को उठाना,
2- तथा रुकूअ करते समय,
3- और रुकूअ से उठते समय भी हाथ उठाना,
4- उसके बाद उसे छोड़ देना,
5- दायें हाथ को बायें हाथ पर रखना,
6-अपनी दृष्टि को सज्दे के स्थान पर रखना,
7- ख़ड़े होते हुए दोनों पैरों के बीच दूरी रखना,
8- रुकूअ में अपने दोनों घुटनों को अपनी उंगलियों को फैलाते हुए पकड़ना, पीठ सीधी रखना एवं सिर आगे की ओर रखना,
9- सज्दों में सज्दों के अंगों को ज़मीन पर टिकाना एवं सज्दों की जगह को छूना,
10- अपने दोनों बाज़ू को अपने दोनों पहलू (पसली) से, पेट को रानों से तथा रानों को पिंडलियों से अलग रखना, अपने दोनों घुटनों के बीच दूरी रखना, पैरों को खड़ा रखना, अपनी उंगलियों के अंदरूनी हिस्से को अलग-अलग करते हुए धरती पर बिछाना तथा दोनों हाथों को गर्दन के बराबर फैला कर रखना इस अवस्था में कि दोनों हाथों की उंगलियों सटी हुई हों।
11- दोनों सज्दों के बीच की बैठक एवं पहले तशह्हुद में इफ़तिराश (अपने बायां पैर को चूतड़ के नीचे रखना एवं उसपर बैठना, और दायां पैर को खड़ा रखना) करना एवं दूसरे तशह्हुद में तवर्रुक (अर्थात बायां पैर को दायें पैर के नीचे से आगे निकाल कर ज़मीन पर बैठना, इस हाल में कि दायां पैर खड़ा हो) करना।
12- दोनों सज्दों के बीच एवं तशह्हुद में दोनों हाथों को दोनों रानों के ऊपर फैला कर एवं उंगलियों को मिला करके रखना, परंतु तशह्हुद की स्थिति में कनिष्ठा एवं अनामिका उंगलियों द्वारा मुट्ठी बना लेना,एवं अंगूठा एवं मध्यमा उंगलियों का दायरा बनाना तथा तर्जनी अर्थात गवाही देने वाली उंगली से अल्लाह का ज़िक्रव् करते समय इशारा करना,
13- सलाम फेरते समय दायें एवं बाएं दोनों ओर देखना।