उत्तर- नमाज़ के चौदह स्तंभ हैं, और वह इस प्रकार हैं:
पहला: क्षमता रखने वाले पर फ़र्ज़ नमाज़ में खड़ा होना,
तकबीर-ए-तहरीमा, और यह ''अल्लाहु अकबर'' कहना है,
सूरा फ़ातिहा पढ़ना,
रुकुअ, (जिसमें) अपनी पीठ को सपाट रखे और अपना सिर आगे की ओर रखे,
रुकूअ से सिर उठाना,
सीधा खड़ा होना,
सज्दा, तथा सज्दा की जगह में अपनी पेशानी, नाक, दोनों हथेलियों, घुटनों, और दोनों पैर की उंगलियों के किनारों को टिकाए।
सज्दे से सिर उठाना,
दोनों सज्दों के बीच बैठना,
सुन्नत यह है किः बायां पैर को बिछाए एवं दायां पैर को खड़ा रखे, तथा उसे क़िबला रुख रखे।
शांति, और यह नमाज़ के हर काम में सुकून का होना है।
अंतिम तशह्हुद,
उसके लिए बैठना,
और दोनों सलाम, और वह यह है कि दो बार ''अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह'' कहा जाए।
स्तंभों के क्रम का ख़्याल -जैसा कि मैं ने उल्लेख किया-, यदि जान बूझ कर रुकूअ से पहले सज्दा करे, तो नमाज़ बात़िल (व्यर्थ) हो जाएगी, और यदि भूल कर करे तो उसके लिए लौटकर रुकूअ करना, फिर सजदा करना वाजिब है।