उत्तर- इसका अर्थ है: अल्लाह ने उन्हें सारे संसार के लिए शुभ संदेश देने वाला एवं डराने वाला बनाकर भेजा है।
तथा वाजिब है:
1- उनके दिए गए आदेशों का पालन करना।
2- उनके द्वारा दी गई ख़बरों को सच मानना।
3- उनकी अवज्ञा न करना।
4- अल्लाह की उसी तरह इबादत करना जैसा कि उन्होंने बताया है, और वह है सुन्नत का पालन करना एवं बिद्अत को त्याग देना।
अल्लाह तआला ने कहा है: (مَنْ يُطِعِ الرَّسُولَ فَقَدْ أَطَاعَ اللَّهَ) ''जिसने रसूल का आज्ञापालन किया तो उसने अल्लाह का आज्ञापालन किया''।[सूरा अल-निसा: 80], पाक अल्लाह ने एक स्थान पर कहा है: (وَمَا يَنْطِقُ عَنِ الْهَوَى 3 إِنْ هُوَ إِلَّا وَحْيٌ يُوحَى 4) ''वह (रसूल) अपनी तरफ से कुछ नहीं कहते हैं, वह जो भी कहते हैं वह वह्यी होती है, जो अल्लाह की ओर से उनकी ओर भेजी जाती है''। [सूरा अल-नज्म: 3,4] महान एवं उच्च अल्लाह ने एक जगह कहा: (لَقَدْ كَانَ لَكُمْ فِي رَسُولِ اللَّهِ أُسْوَةٌ حَسَنَةٌ لِمَنْ كَانَ يَرْجُو اللَّهَ وَالْيَوْمَ الْآخِرَ وَذَكَرَ اللَّهَ كَثِيرًا) "तुम्हारे लिए अल्लाह के रसूल में उत्तम आदर्श है, उसके लिए, जो आशा रखता हो अल्लाह और अंतिम दिन (प्रलय) की, तथा याद करे अल्लाह को अत्यधिक"। [सूरा अल-अहज़ाब: 21]